'भारत दर्शन' : 'अपनी धरती, अपने लोग' -
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''धूप में निकलो, घटाओं में नहाकर देखो
जिंदगी क्या है, किताबों को हटाकर देखो।''
निदा फाजली साहब की ये पंक्तियां यूं तो हमेशा मुझे अपील करती थीं, पर इन्हें सही मायने में साकार करने का मौका मिला, हम प्रशिक्षु IAS अधिकारियों के विंटर स्टडी टूर के दौरान, जिसे 'भारत दर्शन' के नाम से जाना जाता है।
यूं तो अपना भारत इतना वैविध्यपूर्ण, विराट और बहुरंगी है कि दो महीने के समय में इसकी पूरी झलक भी नहीं मिल सकती। लेकिन हम 58 दिनों में देश के 16 राज्यों/केंद्रशासित क्षेत्रों का भ्रमण कर सके। इस दौरान हमने कोशिश की, देश की नब्ज पकड़ने की, मुल्क की प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक, औद्योगिक, आध्यात्मिक विशिष्टताओं को महसूस करने की और साथ ही कोशिश की, गांधीजी के बताए जंतर के मुताबिक आखिरी छोर पर खड़े आम आदमी के मन की थाह लेने की।
हमारा यह भारत दर्शन महज पर्यटन स्थलों की सैर या प्रकृति की सुंदरता की झलक लेने तक सीमित नहीं, बल्कि समग्र भारत का दर्शन था। इसका मतलब था, इस विराट देश की अद्भुत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता, देश के राजनीतिक, प्रशासनिक और लोकतांत्रिक व पंचायती ढांचे की समझ; जल-थल-वायु सीमाओं के प्रहरी सैन्य व अर्धसैनिक बलों के जीवट और जज्बे का अनुभव; पहाड़, दर्रे, पठार, नदी, सागर, द्वीप समेत हर भौगोलिक विविधताओं का अहसास; मुख्यधारा से कटे जनजातीय व हाशिये के लोगों की जिन्दगियों की झलक; उग्रवाद व चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों की जिन्दगी के मुश्किल हालातों की समझ; और कृषि, उद्योग, ऊर्जा, संचार, परिवहन, ग्रामीण व शहरी विकास जैसे तमाम क्षेत्रों में देश की लंबी विकास यात्रा और सरकारी व गैर-सरकारी प्रयासों की समग्र समझ विकसित करना। दिसंबर, 2015 के अंत मसूरी की कड़ाके की ठंड के बीच हम निकले अपनी इस अद्भुत, विराट और वैविध्यपूर्ण यात्रा के लिए। हमारे भारत दर्शन का पहला पड़ाव था बुद्ध और महावीर के विहार की भूमि #बिहार। राजधानी पटना रेलवे स्टेशन पर भीड़-भाड़ में एक अजीब सी रौनक थी। अतिथि गृह में सामान रखा और निकल पड़े घूमने और कुछ नया सीखने। बाढ़ कस्बे में NTPC संयंत्र का अवलोकन कर इसकी कार्यप्रणाली समझी, तो वहां की मशहूर मिठाई लाई का भी स्वाद चखा। शाम को खाए लिट्टी-चोखा का जायका भुलाए नहीं भूलता। पटना में अगले दिन हमने कलेक्ट्रेट परिसर, पुलिस हेल्पलाइन, आईसीएआर और बिहार पावर कॉरपोरेशन का भ्रमण कर प्रशासन के कुछ नए सबक सीखे। रात को पटना साहिब गुरुद्वारा में मत्था टेका। गुरू गोविंद सिंह के जन्मस्थान का दर्शन स्वंय में एक अनूठा अनुभव था।
बिहार में नालंदा और गया भी गए। सुबह-सुबह कोहरे में पटना से नालंदा तक की यात्रा लाजवाब थी। खासकर सड़क की गुणवत्ता जबर्दस्त थी। हिंदू-बौद्ध-जैन धर्मों के तीर्थस्थल राजगीर का भ्रमण सचमुच अद्भुत था। यहां हर कदम पर कोई ना कोई सांस्कृतिक स्थल है। हमने यहां विश्व शांति स्तूप, घोड़ा कटोरा और प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष देखे। राजगीर के इस स्तूप तक जाने के लिए बना रोप-वे, दरअसल देश का सबसे पुराना रोप-वे है। नालंदा विश्वविद्यालयों के भग्नावशेषों को देखकर आप विस्मित हुए बिना नहीं रह पाते। क्या हजारों साल पहले भी इतनी विकसित शिक्षा प्रणाली हो सकती है ? नालंदा में हमने थीम पार्क पांडु पोखर का भी भ्रमण किया। यहां झील के बीच महाभारत के पात्र राजा पाण्डु की विराट प्रतिमा भी है। इस झील के किनारे ठंडी हवा भरे खूबसूरत मौसम को छोड़कर जाने का मन नहीं हो रहा था। अगले दिन सुबह तीर्थंकर महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी स्थित विख्यात जलमंदिर के दर्शन भी किए। विशाल तालाब के बीचोंबीच मंदिर और तालाब में असंख्य कमल व बत्तखों की वजह से पूरा परिसर बेहद सुंदर लग रहा था। राजगीर में हमें बिहार के माननीय मुख्यमंत्री जी, श्री नीतीश कुमार से भी मिलने का मौका मिला। उन्होंने अपने अनुभव हमसे साझा किए और बिहार की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत को संजोने पर बल दिया। उनकी स्मरणशक्ति, विनोदप्रियता और वैविध्यपूर्ण ज्ञान का भी जवाब नहीं। मुख्यमंत्री जी से सुशासन का पाठ सीखने के बाद हम गया के लिए रवाना हो गए। गया में चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में तैनात कोबरा बटालियन का दौरान किया। कोबरा बटालियन अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह मुस्तैद है। जवान किस प्रकार विषम परिस्थितियों में भी पूरे उत्साह के साथ अपनी धुन में लगे हैं, यह काबिले-तारीफ है। बोधगया में बुद्ध के ज्ञान की भूमि पर महाबोधि मंदिर के दर्शन करना एक आध्यात्मिक अनुभव था। ध्यानस्थ बुद्ध किसी के भी मन को परमशांति की ओर ले जाते हैं। विदेशी श्रद्धालु बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान और आत्मचिंतन में रत थे। सचमुच अलौकिक और अद्धभुत!
विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों को नमन करके हम खनिजों के राज्य झारखंड की ओर रवाना हो गए।
झारखंड में हमारा प्रवास LWE प्रभावित जिलों लातेहार और बोकारो में रहा। लातेहार का भ्रमण किया। LWE प्रभावित क्षेत्रों की समस्याओं को यहां समझा जा सकता है। यह भी कि इन क्षेत्रों में पर्यटन व रोजगार सजृन की अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरत है, तो उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की। नेतरहाट के अनूठे सूर्योदय का आनंद लेकर स्टील सिटी बोकारो पहुंचे। बोकारो स्टील व थर्मल प्लांट के कारण नगर का पर्याप्त विकास हुआ है। बिहार और झारखंड के बारे में हमारे नजरिए काफी बदलाव हुआ है। दोनों राज्यों में पर्याप्त विकास हुआ है। अगर आप इनके बारे में किसी स्टीरियोटाइप सोच के शिकार हैं, तो आपको दोबारा सोचना पड़ सकता है।
झारखंड से सीधे हमने अनेदखे-अनछुए स्वर्ग भारत के #पूर्वोत्तर में प्रवेश किया। पूर्वोत्तर में सबसे पहले हमारा आर्मी अटैचमेंट था। डिब्रूगढ़ से शुरु हुआ यह आर्मी अटैचमेंट #अरुणाचल के आखिरी छोर पर चीन बॉर्डर तक जाकर खत्म हुआ। एक हफ्ते तक सैन्यबलों के जवानों और अधिकारियों के साथ रहना, उनके जीवन, जज्बे और भावनाओं को नजदीक से समझना एक अविस्मरणीय अनुभव था। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में स्लीपिंग बैग में कंपकंपाते हुए रात बिताना, अंधेरी रात में नदी किनारे पेट्रोलिंग, पहाड़ों पर खतरनाक रास्तों पर ट्रैक, निशानेबाजी द्वारा लक्ष्य साधने का अभ्यास, ट्रकों में बैठकर बॉर्डर पर जाना और भारत की आखिरी ऑब्जरवेशन पोस्ट पर चढ़कर उस पार चीन को देखना हमारे आर्मी अटैचमेंट के कुछ यादगार पलों में से एक था।
2 माउंटेन डिवीजन के अन्तर्गत, 11 ग्रेनेडियर्स, 10 सिख, आर्मी एविएशन, 8 जाट समेत अनेकों यूनिटों में देश की रक्षा चुनौतियों और संबंधित तैयारियों को समझना और अपने वीर जवानों के शौर्य के प्रति संवेदनशील होना, इस अटैचमेंट का उद्देश्य भी था, और उपलब्धि भी।
इसके बाद हम #असम के तिनसुकिया जिले पहुंचे। चाय के बागानों की धरती पर चारों और प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा है। हम मोंगुरी बील गए, जहां नौका विहार कर पक्षियों की अनेकों प्रजातियों को करीब से देखना दिलचस्प था। डिगबोई की तेल रिफाइनरी और मार्घेरिटा की कोयला खानें बताती हैं कि राष्ट्र के निर्माण में सबकी अपनी-अपनी प्रभावी भूमिका है।
उत्तर-पूर्व के सौन्दर्य के साकार स्वरूप #मेघालय में हमारा प्रवेश हुआ। शिलांग एक बेहद शांत और सुंदर नगर है। बारिश के बीच हम एशिया के सबसे स्वच्छ गांव मालिनोंग पहुंचे। रास्ते में पहाड़ों के बीच तैरती धुंध देखकर लगता है कि हम बादलों के बीच हैं। सचमुच 'मेघालय' नाम सार्थक प्रतीत होता है। विस्मित कर देने वाले 'लिविंग रूट ब्रिज' और बांस का बना 'स्काईवॉक' स्वंय में रोमांचक अहसास कराते हैं।
पूर्वोत्तर की इस यात्रा का आखिरी पड़ाव था #त्रिपुरा। क्लाउडेड लेपार्ड नैशनल पार्क में चश्मे वाले बंदर हों या फिर स्नेक शो में पूर्वोत्तर के सांपों की प्रजातियों का प्रत्यक्ष अवलोकन, त्रिपुरेश्वरी मंदिर के दर्शन हों या फिर स्थानीय बांस के हस्तशिल्प का अवलोकन, त्रिपुरा मेरे दिल में बस गया। अगरतला को छोड़कर जाने का मन नहीं था। यहां माननीय मुख्यमंत्री जी श्री माणिक सरकार से विकास के मंत्र सीखकर हम सीधे पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए।
ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी रहा #कोलकाता आज भी स्वंय में ब्रिटिश राज की यादें संजोए हुए है। विक्टोरिया मैमोरियल भारत में ब्रिटिश शासन के दौर की दास्तां कहता है। दुर्गापूजा के लिए विश्वप्रसिद्ध इस नगर के दक्षिणेश्वरी और कालीघाट मंदिर मातृशक्ति के प्रति श्रद्धा के भाव से भर देते हैं। कोलकाता की जीवनरेखा हावड़ा ब्रिज पर असंख्य लोगों की भाग-दौड़ भरी जिंदगी को आप ठिठक कर देखते रह जाते हैं, तो पार्क स्ट्रीट की चाय, गपशप और रौनक आपको यहां से जाने नहीं देती। सचमुच कोलकाता भारत की सांस्कृतिक राजधानी और 'सिटी ऑफ जॉय' है। यहां हमने 'गार्डन रीच शिप बिल्डर्स' भी देखा और गणतंत्र दिवस भी मनाया। भव्य गणतंत्र दिवस परेड देखकर हम सीधे पहुंचे सुदूर पूर्व और दक्षिण में स्थित #अंडमान-निकोबार द्वीप समूह। पोर्ट ब्लेयर एयरपोर्ट पर उतरते ही भारी गर्मी और आर्द्रता का अहसास हुआ। सेल्युलर जेल में लाइट एंड साउंड शो ने जीवंत कर दिया ब्रिटिश राज में क्रांतिकारियों को दी जाने वाली कालेपानी की सजा के जुल्मो-सितम को। अंडमान में हमारा नौसेना और तटरक्षक बल का भी अटैचमेंट था। नौसेना के जहाज पर समुद्र में जाकर नौसेना की तत्परता और मुश्किलों को समझना रोमांचक था। कोस्ट गार्ड भारतीय तटों की निगरानी के काम में पूरी ऊर्जा के साथ तत्पर हैं।
द्वीप की भौगोलिक परिस्थितियों और जीवन को समझने हम हैवलॉक द्वीप गए। यहां स्कूबा डाइविंग से लेकर राधानगर और काला पत्थर बीच पर मस्ती तक काफी दिलचस्प एक्सपीरियंस रहा। यहां इतना मन लगा कि यहां से जाने का मन नहीं था। खासकर राधानगर बीच तक स्कूटर की ड्राइव और दोनों ओर नारियल के पेड़ों से आती मीठी-मीठी हवा मैं कभी नहीं भूल सकता। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह कुछ मायनों में पूरे देश के लिए अनुकरणीय उदाहरण है। परस्पर मैत्री, कोई सांप्रदायिक या भाषायी तनाव नहीं। ऐसी विशेषताएं इस द्वीप समूह को विशिष्ट बनाती हैं। यहां की संपर्क भाषा हिंदी है और विविध भाषा-भाषी लोग परस्पर प्रेम से हिंदी का व्यवहार करते हैं।
अंडमान के बाद हमने दक्षिण भारत में प्रवेश किया। चेन्नई एक बड़ा और सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध शहर है। वहां की सड़कें, खाना-पीना और खुद की विरासत को संजोने की प्रवृति प्रशंसनीय भी है और अनुकरणीय भी। राजकीय संग्रहालय और कोर्ट म्यूजियम, मरीना बीच और विवेकानंद हाउस, कपालीश्वर और पार्थसारथी मंदिर, तमिलनाडु की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत के साक्षी हैं। अगर आपको मंदिरों की स्थापत्य कला देखनी है, तो दक्षिण आ जाएं। चेन्नई में हमने प्राइवेट सेक्टर की कम्पनियां अशोक लीलैंड और टी.वी.एस. के परिसरों का भी भ्रमण किया और सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टिट्यूट का योगदान भी समझा। रही बात दक्षिण भारतीय भोजन की, तो मैं दक्षिण भारतीय थाली का बड़ा शौकीन था और पूरे दक्षिण प्रवास में मैंने एक बार भी नॉर्थ इंडियन भोजन की मांग नहीं की।
तमिलनाडु से हमने #कर्नाटक की राह पकड़ी। बेहद विकसित आईटी हब बेंगलुरु में ट्रैफिक जाम एक बड़ी समस्या है। शहर सुव्यवस्थित और आकर्षक है। हमने विज्ञान प्रोद्योगिकी संग्रहालय देखा तो लाल बाग बोटेनिकल गार्डन की भी सैर की। कर्नाटक विधानसभा भवन के स्थापत्य को देखकर कोई भी रोमांचित हो सकता है। भवन के मुख्य द्वार पर उत्कीर्ण वाक्य ‘Government Work is God's Work’ सेवा की प्रतिबद्धता की प्रेरणा देता है। अक्षय पात्र फाउंडेशन का अवलोकन कर हमने देश भर में मिड डे मील कार्यान्वन में उनकी नि:स्वार्थ भरी भूमिका को समझा, साथ ही 'जनाग्रह सेंटर फॉर सिटीजनशिप एंड डेमोक्रेसी' और नारायण हृदयालय परिसर का भी दौरा किया।
यहां से पहुंचे जुड़वा शहर सिकंदराबाद-हैदराबाद। हुसैनसागर झील के बीच आशीष देते बुद्ध बहुत अच्छे लगते हैं। चारमीनार इस शहर ही शान है। अगर चारमीनार के बाजार की रौनक नहीं देखी, तो कुछ नहीं देखा। हैदराबाद में हमारा वायुसेना का अटैचमेंट भी था। कॉलेज ऑफ एयर वॉरफेयर, नेविगेशन ट्रेनिंग स्कूल और भव्य वायुसेना अकादमी का भ्रमण कर सिमुलेटर, नाइट विजन, ऐरो मेडिसिन, विमानों की उड़ान और संचालन के कंट्रोल को समझा। 'Touch the sky with glory’ के मंत्र के साथ भारतीय वायुसेना ऊंचाईयों की ओर निरंतर बढ़ रही है। यहां हमने सी.एस.आई.आर. के केंद्र ‘सेंटर ऑफ सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी’ परिसर का भी अध्ययन भ्रमण किया।
तेलंगाना के दूसरे पड़ाव भद्राचलम (खम्मम) पहुंचे। राम के वनगमन मार्ग का प्रमुख स्थल भद्राचलम बड़ा तीर्थ है। यहां हमारा मंदिर ट्रस्ट प्रबंधन का अटैचमेंट भी था। भद्राचलम मंदिर के दर्शन के साथ-साथ राम लक्ष्मण, सीता के वनगमन की स्मृतियों की साक्षी ‘पर्णशाला’ भी गए। यहां का एक और अविस्मरणीय अनुभव था, सिंगरेनी की कोयला खानों में खुद भीतर जाकर कोयला खनन की प्रक्रिया को समझना। खम्मम जिला एक चरमपंथ प्रभावित जिला है। हमने जनजातीय क्षेत्रों में जाकर शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रयास देखे और ग्रामीण महिलाओं व छात्राओं से बात-चीत भी की।
दक्षिण भारत की इस अविस्मरणीय यात्रा के बाद संतरों के शहर नागपुर में MIHAN और MOIL(मैंगनीज ऑर इण्डिया लि ) भ्रमण के माध्यम से औद्योगिक विकास की कहानी समझते हुए मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा पहुंचे। नवगठित नगर निगम की कार्यप्रणाली समझना और जनप्रतिनिधियों से चर्चा का अनुभव बहुत कुछ सिखा गया।
यहां से दिल्ली पहुंचे और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और नेशनल म्यूजियम का भ्रमण किया।
अपने इस दो महीने के ‘भारत दर्शन’ के बारे में, अगर मैं ये कहूं कि यह मेरे जीवन का सबसे यादगार समय था, तो अतिश्योक्ति न होगी। जिंदगी में बहुत सारी चीजें पहली बार हुई हैं। न केवल नए सबक सीखे, बल्कि चेतना, भावबोध और संवेदना का विस्तार भी हुआ। जीवन को लेकर नजरिए में परिपक्वता आई और इस देश की विविधता में एकता की संस्कृति की जीवन्तता हमेशा-हमेशा के लिए दिल में बस गई। इस्माइल मेरठी ने क्या खूब कहा है-
''सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल, ज़िंदगानी फिर कहाँ,
ज़िंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ। ''
अद्भुत वर्णन सर......😊
ReplyDeleteअद्भुत वर्णन सर......😊
ReplyDeleteपढ़ते वक़्त एकबारगी तो ऐसा लगा कि मानो हम भी इस भारतदर्शन में आपके साथ ही चल रहे हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद निशांत सर।
सिर्फ़ आपके कहने मात्र से निशांत भैया इतना रोमांचित अनुभूति मिल रही है। तो आपने तो इसे अनुभव किया है,इस यात्रा वृत्तान्त की अनुभूति इतना रोमांचित कर रहा है। की आज फिर से एक नई ऊर्जा के साथ तैयारी में लग गया हूं। आपके मार्गदर्शन का आगे इंतजार रहेगा।।
ReplyDeleteAwesome sir...🌻🌼
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