Thursday 23 March 2017

सतह पर ही न रहें, मर्म भी समझें ....


सतह पर ही न रहें, मर्म भी समझें....


किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए।
अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे। बारह वर्ष तक जी लगाकर पढ़ने के बाद वे सभी अच्छे विद्वान हो गये।
अब उन्होंने सोचा कि हमें जितना पढ़ना था पढ़ लिया। अब अपने गुरु की आज्ञा लेकर हमें वापस अपने नगर लौटना चाहिए। यह निर्णय करने के बाद वे गुरु के पास गये और आज्ञा मिल जाने के बाद पोथे सँभाले अपने नगर की ओर रवाना हुए।
अभी वे कुछ ही दूर गये थे कि रास्ते में एक तिराहा पड़ा। उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आगे के दो रास्तों में से कौन-सा उनके अपने नगर को जाता है। अक्ल कुछ काम न दे रही थी। वे यह निर्णय करने बैठ गये कि किस रास्ते से चलना ठीक होगा।
अब उनमें से एक पोथी उलटकर यह देखने लगा कि इसके बारे में उसमें क्या लिखा है।
संयोग कुछ ऐसा था कि उसी समय पास के नगर में एक बनिया मर गया था। उसे जलाने के लिए बहुत से लोग नदी की ओर जा रहे थे। इसी समय उन चारों में से एक ने पोथी में अपने प्रश्न का जवाब भी पा लिया। कौन-सा रास्ता ठीक है कौन-सा नहीं, इसके विषय में उसमें लिखा था, ‘‘महाजनो येन गतः स पन्था।’’
किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि यहाँ महाजन का अर्थ क्या है और किस मार्ग की बात की गयी है। श्रेणी या कारवाँ बनाकर निकलने के कारण बनियों के लिए महाजन शब्द का प्रयोग तो होता ही है, महान व्यक्तियों के लिए भी होता है, यह उन्होंने सोचने की चिन्ता नहीं की। उस पण्डित ने कहा, ‘‘महाजन लोग जिस रास्ते जा रहे हैं उसी पर चलें!’’ और वे चारों श्मशान की ओर जानेवालों के साथ चल दिये।
श्मशान पहुँचकर उन्होंने वहाँ एक गधे को देखा। एकान्त में रहकर पढ़ने के कारण उन्होंने इससे पहले कोई जानवर भी नहीं देखा था। एक ने पूछा, ‘‘भई, यह कौन-सा जीव है?’’
अब दूसरे पण्डित की पोथी देखने की बारी थी। पोथे में इसका भी समाधान था। उसमें लिखा था।
'उत्सवे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे।
राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति सः बान्धवः।'
बात सही भी थी, बन्धु तो वही है जो सुख में, दुख में, दुर्भिक्ष में, शत्रुओं का सामना करने में, न्यायालय में और श्मशान में साथ दे।
उसने यह श्लोक पढ़ा और कहा, ‘‘यह हमारा बन्धु है।’’ अब इन चारों में से कोई तो उसे गले लगाने लगा, कोई उसके पाँव पखारने लगा।
अभी वे यह सब कर ही रहे थे कि उनकी नजर एक ऊँट पर पड़ी। उनके अचरज का ठिकाना न रहा। वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि इतनी तेजी से चलने वाला यह जानवर है क्या बला!
इस बार पोथी तीसरे को उलटनी पड़ी और पोथी में लिखा था, 'धर्मस्य त्वरिता गतिः'।
धर्म की गति तेज होती है। अब उन्हें यह तय करने में क्या रुकावट हो सकती थी कि धर्म इसी को कहते हैं। पर तभी चौथे को सूझ गया एक रटा हुआ वाक्य, 'इष्टं धर्मेण योजयेत' यानि प्रिय को धर्म से जोड़ना चाहिए।
अब क्या था। उन चारों ने मिलकर उस गधे को ऊँट के गले से बाँध दिया।
अब यह बात किसी ने जाकर उस गधे के मालिक धोबी से कह दी। धोबी हाथ में डण्डा लिये दौड़ा हुआ आया। उसे देखते ही वे वहाँ से चम्पत हो गये।
वे भागते हुए कुछ ही दूर गये होंगे कि रास्ते में एक नदी पड़ गयी। सवाल था कि नदी को पार कैसे किया जाए। अभी वे सोच-विचार कर ही रहे थे कि नदी में बहकर आता हुआ पलाश का एक पत्ता दीख गया। संयोग से पत्ते को देखकर पत्ते के बारे में जो कुछ पढ़ा हुआ था वह एक को याद आ गया। 'आगमिष्यति यत्पत्रं तत्पारं तारयिष्यति।' यानि आनेवाला पत्र ही पार उतारेगा।
अब किताब की बात गलत तो हो नहीं सकती थी। एक ने आव देखा न ताव, कूदकर उसी पर सवार हो गया। तैरना उसे आता नहीं था। वह डूबने लगा तो एक ने उसको चोटी से पकड़ लिया। उसे चोटी से उठाना कठिन लग रहा था। यह भी अनुमान हो गया था कि अब इसे बचाया नहीं जा सकता। ठीक इसी समय एक दूसरे को किताब में पढ़ी एक बात याद आ गयी कि यदि सब कुछ हाथ से जा रहा हो तो समझदार लोग कुछ गँवाकर भी बाकी को बचा लेते हैं। सबकुछ चला गया तब तो अनर्थ हो जाएगा।
यह सोचकर उसने उस डूबते हुए साथी का सिर काट लिया।
अब वे तीन रह गये। जैसे-तैसे बेचारे एक गाँव में पहुँचे। गाँववालों को पता चला कि ये ब्राह्मण हैं तो तीनों को तीन गृहस्थों ने भोजन के लिए न्यौता दिया। एक जिस घर में गया उसमें उसे खाने के लिए सेवईं दी गयीं। उसके लम्बे लच्छों को देखकर उसे याद आ गया कि दीर्घसूत्री नष्ट हो जाता है, दीर्घसूत्री विनश्यति। मतलब तो था कि दीर्घसूत्री या आलसी आदमी नष्ट हो जाता है पर उसने इसका सीधा अर्थ लम्बे लच्छे और सेवईं के लच्छों पर घटाकर सोच लिया कि यदि उसने इसे खा लिया, तो नष्ट हो जाएगा। वह खाना छोड़कर चला आया।
दूसरा जिस घर में गया था वहाँ उसे रोटी खाने को दी गयी। पोथी फिर आड़े आ गयी। उसे याद आया कि अधिक फैली हुई चीज की उम्र कम होती है, 'अतिविस्तार विस्तीर्णं तद् भवेत् न चिरायुषम्।' वह रोटी खा लेता तो उसकी उम्र घट जाने का खतरा था। वह भी भूखा ही उठ गया।
तीसरे को खाने के लिए ‘बड़ा’ दिया गया। उसमें बीच में छेद तो होता ही है। उसका ज्ञान भी कूदकर उसके और बड़े के बीच में आ गया। उसे याद आया, 'छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति।' छेद के नाम पर उसे बड़े का ही छेद दिखाई दे रहा था। छेद का अर्थ भेद का खुलना भी होता है, यह उसे मालूम ही नहीं था। वह बड़े खा लेता तो उसके साथ भी अनर्थ हो जाता। बेचारा वह भी भूखा रह गया।
लोग उनके ज्ञान पर हँस रहे थे पर उन्हें लग रहा था कि वे उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। अब वे तीनों भूखे-प्यासे ही अपने-अपने नगर की ओर रवाना हुए।
यह कहानी सुनाने के बाद स्वर्णसिद्धि ने कहा, ‘‘तुम भी दुनियादार न होने के कारण ही इस आफत में पड़े। इसीलिए मैं कह रहा था शास्त्रज्ञ होने पर भी मूर्ख मूर्खता करने से बाज नहीं आते।’’
                पंचतंत्र की यह रोचक कहानी स्वयं में बहुत से निहितार्थ समेटे हुए है। पढ़े-लिखे होकर भी लकीर के फ़क़ीर बने रहने वाले इन चार विद्यार्थियों की यह कहानी थोड़ी अतिशयोक्तिपूर्ण ज़रूर लगती है, पर यह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर हमें ज़िंदगी और साथ ही परीक्षा की तैयारी के लिए दिशा देने का काम भी करते है। आइए, चर्चा करें-
आपके अंग्रेज़ी का एक मुहावरा सुना होगा, 'Reading between the lines'। साथ ही एक और मुहावरा है, 'in black and white.' पहले मुहावरे का अर्थ है, जो स्पष्ट तौर पर लिखा हुआ नहीं दिख रहा है, उसके वास्तविक अर्थ या मर्म (essence) को समझना। दूसरे मुहावरे का अर्थ है, सब कुछ एकदम स्पष्ट होना और कोई कंफ्यूजन न होना। reading between the lines की प्रासंगिकता नए पैटर्न में इसलिए ज़्यादा है क्योंकि सब कुछ in black and white उपलब्ध नहीं होता। कहने का मतलब यह है, कि किसी भी कथन या अध्ययन सामग्री का शाब्दिक (literal) अर्थ पकड़कर लकीर के फ़क़ीर बनने के बजाय उसका निहित अर्थ या वास्तविक मर्म/अभिप्राय समझना ही आज की माँग है।
                 संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोगों के नए पैटर्न में आप यह बदलाव महसूस करेंगे कि अब लकीर के फ़क़ीर बने रहकर या चीज़ों को केवल कंठस्थ करके सफलता पाना सम्भव नहीं है, जब तक उनके अर्थ या मर्म को हृदयंगम न  कर लिया जाय। चाहे वैकल्पिक विषय की अवधारणाएँ हों या करेंट अफ़ेयर्स का आधारभूत सामान्य अध्ययन से सम्बंध; निबंध के लिए सामान्य समझ हो या एथिक्स में एक संतुलित दृष्टिकोण; इन सबके लिए ही पाठ्यक्रम के मर्म और अपेक्षा को समझते हुए अपनी समझ का विस्तार करना ज़रूरी है।
            आइए, समझने की कोशिश करें कि किन आसान तरीक़ों की मदद से हम सतही ज्ञान से गहन और मार्मिक ज्ञान की ओर बढ़कर सफलता की सम्भावनाओं को बढ़ा सकते हैं:-
- जब भी कोई नया विषय या टॉपिक पढ़ें, तो सबसे पहले उसे तसल्ली से सरसरी तौर पर बिना किसी दबाव के, पढ़ लें।
- इस दौरान कोशिश करें कि महत्वपूर्ण बिंदुओं या अंशों को रेखांकित (underline) या हाईलाइट करते चलें। ध्यान रहे, बहुत ज़्यादा हिस्सा रेखांकित न हो।
- जब आपका किसी नए पारिभाषिक शब्द (terminology) या नयी अवधारणा (concept) से हो, तो उसको अलग से नोट करके उसका अर्थ समझने की कोशिश करें। इसके लिए किसी कोश या विकिपीडिया/इंटरनेट का भी सहारा ले सकते हैं। यदि ज़रूरत महसूस हो तो किसी संदर्भ ग्रंथ (reference book) की भी मदद ले सकते हैं।
- पढ़ना एक बात है और उसे समझना व उस पर मनन करना दूसरी। अधिगम (learning) की प्रक्रिया, पढ़ने के साथ-साथ रिवीज़न, चिंतन-मनन और श्रवण (listening) और चर्चा (discussion) से होकर पूर्ण होती है। अतः सतही ज्ञान से आगे बढ़ने के लिए पढ़ाई के इन आवश्यक घटकों का भी भरपूर इस्तेमाल करें। इस बात का भी ध्यान रखें कि आपको इस परीक्षा में सफलता के लिए विशेषज्ञ (specialist) नहीं, सामान्यज्ञ (generalist) ही बनना है।
- उपनिषद में कहा गया है कि 'वाद-विवाद-संवाद से तत्वबोध होता है', लिहाज़ा चर्चा के लिए हमेशा सहज रहें।
- दूसरों के विचारों का सम्मान करना सीखें और सहिष्णु बनें ताकि निरंतर कुछ नया सीख सकें।
- हमेशा सीखने को तैयार रहें और चारों और से बेहतर विचारों (ideas) को अपनी ओर आने दें।
- परीक्षा की तैयारी के दौरान सामान्य अध्ययन के विभिन्न खंडों (segments) को बिलकुल अलग-अलग मानकर न देखें। इन्हें परस्पर कनेक्ट करके समझें। ये विभिन्न खंड आपस में जुड़े होते हैं और एक क्षेत्र में हुए बदलाव का असर दूसरे क्षेत्र पर भी पड़ता है। 
- अध्ययन सामग्री को व्यवस्थित करना भी ज़रूरी है। एक टॉपिक के लिए बहुत सारे स्त्रोतों को पढ़ने की ज़रूरत नहीं है।स्त्रोतों में आवश्यकतानुसार विविधता रखें और जो भी टॉपिक जहाँ से भी पढ़ें, उसे कहीं डायरी में नोट भी कर लें।
- नए पैटर्न के मुताबिक़, सतही ज्ञान आपको बहुत आगे तक नहीं ले जा सकता। आपके उत्तर पढ़कर आपके ज्ञान और समझ के स्तर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अतः अपने उत्तरों को अधिक परिपक्व (mature) बनाने के लिए सतही ज्ञान से आगे बढ़ें और मर्म तक पहुँचने की कोशिश करें।

-निशान्त जैन 
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)

Monday 6 March 2017

क्यों पढ़ें यह किताब : 'मुझे बनना है UPSC टॉपर' : लेखक- निशान्त जैन (प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, दिल्ली)

'मुझे बनना है UPSC टॉपर' - निशान्त जैन, IAS 
(Rank 13, UPSC-2014, हिन्दी माध्यम टॉपर)

(सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक पुस्तक)


किताब के बारे में...

गत वर्ष सिविल सेवा परीक्षा में 13 वीं रैंक हासिल कर हिन्दी माध्यम में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वाले 2015 बैच के प्रशिक्षु आई.ए.एस. अधिकारी निशान्त जैन की पहली किताब 'मुझे बनना है UPSC टॉपर' अब बाज़ार में व ऑनलाइन उपलब्ध है। प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस किताब में निशान्त जैन ने IAS व PCS परीक्षाओं की सम्पूर्ण तैयारी से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला है।
कुल 18 अध्यायों के माध्यम से उन्होंने नए पैटर्न के मुताबिक़ प्री, मेन्स, इंटरव्यू तीनों चरणों की रणनीति, निबंध, लेखन कौशल, व्यक्तित्व विकास, मोटिवेशन लेवल, स्टडी मैटेरियल आदि सब पर खुलकर सहज भाषा में चर्चा की है। पुस्तक के अंत में हाल के वर्षों में सिविल सेवा परीक्षा में सफल कुछ चुनिंदा युवाओं की सफलता की संघर्षपूर्ण और अनकही कहानियाँ भी शामिल की गयी हैं। 



किताब की भूमिका जाने-माने सूफ़ी गायक कैलाश खेर (पद्मश्री से सम्मानित जाने-माने सूफी गायक) ने और सम्मतियाँ- आलोक सिन्हा जी,  (वरिष्ठ IAS अधिकारी, उत्तर प्रदेश) श्रीमती मालिनी अवस्थी (पद्मश्री से सम्मानित लोक गायिका), आनंद कुमार (सुपर 30), गौरव अग्रवाल (IAS टॉपर,2013 ) और लेखक नीलोत्पल मृणाल (साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार विजेता) ने लिखी हैं।
272 पृष्ठों की इस किताब की क़ीमत मात्र 195 रुपए है।

क्यों ख़ास है यह किताब ?


परीक्षा की समग्र, संपूर्ण और व्यापक तैयारी के टिप्स 
तैयारी के अनछुए पहलुओं पर खुलकर चर्चा 

परीक्षा के लिए कैसे सँवारें अपना व्यक्तित्व 

 
सकारात्मकता और मोटिवेशन लेवल कैसे बनाए रखें 
प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू के लिए विस्तृत मार्ग दर्शन 

 
निबंध और एथिक्स में श्रेष्ठ अंक कैसे पाएँ 
 
लेखन कौशल को कैसे सुधारें 
 
क्या पढ़ें, क्या पढ़ें और कैसे पढ़ें 
 
नए पैटर्न में कैसी हो प्रासंगिक रणनीति 
साथ में सफलता की
 कुछ अनकही कहानियाँ भी..


लेखक परिचय-

निशान्त जैन, 
हिंदी माध्यम के IAS टॉपर
रैंक 13, UPSC CSE-2014


यूपीएससी की वर्ष 2014 की सिविल सेवा परीक्षा में 13वीं रैंक हासिल करने वाले निशान्त जैन, हिन्दी/भारतीय भाषाओं के माध्यम के टॉपर हैं। मुख्य परीक्षा में देश के तीसरे सर्वाधिक अंक (851अंक) प्राप्त करने वाले निशान्त ने निबंध के प्रश्नपत्र में 160 अंक और वैकल्पिक विषय- हिन्दी साहित्य में 313 अंक प्राप्त किये हैं, जो संभवतः सर्वाधिक अंक हैं। उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर, मेरठ में साधारण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े, निशान्त 2013 में UPSC की सिविल सेवा परीक्षा के अपने पहले प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाये थे।



इतिहास, राजनीति विज्ञान और अंग्रेजी में ग्रेजुएशन और हिंदी साहित्य में पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद यूजीसी की नेट-जे.आर.एफ. उत्तीर्ण की। कॉलिज के दिनों में डिबेट, काव्यपाठ और एंकरिंग के शौक़ीन रहे निशान्त ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एम.फिल. की और लोक सभा सचिवालय के राजभाषा प्रभाग दो साल काम भी किया।

कविताएं लिखने और युवाओं से संवाद स्थापित करने में रूचि रखने वाले निशान्त; भाषा-साहित्य-संस्कृति, सृजनात्मक लेखन, शिक्षा, समाज कार्य और वंचित वर्गों के कल्याण के क्षेत्रों में गहरा रुझान रखते हैं। वह 2015 बैच के आई.ए.एस. प्रशिक्षु अधिकारी हैं। 

ब्लॉग- nishantjainias.blogspot.in


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प्रभात प्रकाशन का हेल्पलाइन नम्बर- 7827007777
(सुबह 10 से शाम 6 बजे तक)