Saturday 31 December 2016

नए साल के नए संकल्प... (New Year Resolutions: my perspective)

नए साल के नए संकल्प...
New Year Resolutions....


जिस तरह हर नई सुबह पिछले दिन के तनावों और अवसादों से मुक्त एक नई शुरुआत की उम्मीद लेकर आती है, उसी तरह नया साल भी ख़ुद में नई ऊर्जा, नई उम्मीदों और नई आकांक्षाओं को समेटे हुए आता है। 
अख़बार-टी.वी.-सोशल मीडिया, सब ओर न्यू ईयर रिज़ोल्यूशन की बाढ़ आ जाती है। हम भी इसी उत्साह में कुछ पुरानी आदतों से छुटकारा पाने और नई आदतों को गले लगाने का संकल्प करते हैं, ताकि हम भी इस नए साल में किसी से पीछे न छूट जाएँ। साथ ही, ये संकल्प करते वक़्त ऐसा लगता है कि हम नए साल के पहले दिन से ही यकायक इन सारे नए संकल्पों का अक्षरश: पालन करना शुरू कर देंगे। यह उम्मीद तो होती है, कि नए साल में पुरानी पीड़ाओं और मुसीबतों से छुटकारा मिलेगा, और जीवन में सफलता व ख़ुशियों का नव उत्कर्ष भी होगा।
किसी कवि ने नए वर्ष पर बहुत ख़ूब लिखा भी-
"'सुखों की कल्पनाएँ हैं, सृजन के गीत लाए हैं,
तुम्हारे वास्ते मन में, बहुत शुभकामनाएँ हैं,
तुम्हारी ज़िन्दगी में कल न कोई पल घटे ऐसा,
उदासी में जो पल पिछले दिनों तुमने बिताए हैं।''

क्या कभी आपने यह भी सोचा है कि पिछले साल नववर्ष के अवसर पर आपने जो संकल्प (resolutions) लिए थे, उनकी प्रगति रिपोर्ट क्या है? मतलब उनमें से कितने संकल्प व्यवहार में परिणत हुए और कितने ठंडे बस्ते में चले गए। जिस तरह रेल बजट में हर साल नई-नई रेलगाड़ियों की घोषणा की ही तरह,  पिछले बजटों में घोषित रेलगाड़ियों का समयबद्ध संचालन भी ज़रूरी है; उसी तरह नए साल पर नए संकल्प संजोने के साथ-साथ पुराने सालों के पुराने से पड़ गए संकल्पों को व्यावहारिक धरातल पर उतरना भी। बशर्ते वे पुराने संकल्प अब भी काम के हों और प्रासंगिक भी हों।

चाहे आप पुराने संकल्प व्यवहार में उतार पाएँ या नहीं, पर फिर भी नया वर्ष नए संकल्पों का उत्साह साथ लाता ही है। लिहाज़ा नए साल में नए संकल्पों के बारे में सोचना बेहद स्वाभाविक भी है और आपकी जीवंतता का प्रतीक भी। मैं भी पिछले कई सालों से न्यू ईयर रेजोल्यूशन लेता रहा हूँ और इस बार भी लूँगा। अंतर बस इतना ही होता है, कि हर साल हमारी प्राथमिकतायें और ज़रूरतें बदलती जाती हैं।
आइए, बात करते हैं 10 ऐसे संकल्पों की, जो हर युवा अभ्यर्थी के लिए प्रेरक हो सकते हैं, और जिन्हें व्यवहार में उतारना ज़्यादा मुश्किल भी नहीं है:-
  1. जीवन में 'निरंतरता' को अपनाने की कोशिश करें। कोई अच्छा काम या अच्छी आदत शुरू करके उसे जारी रखना भी सीखें।
  2. हल्की सी मुस्कान हमेशा बनाए रखें। इससे आपको मुसीबत का सामना करने और नित आगे बढ़ते जाने में मदद मिलेगी। 'Never Never Never Give up'
  3. आज की ख़ुशी को आज ही enjoy करना सीखें। ख़ुशियों को कल पर न टालें। वर्तमान में जीने की आदत  डालें, अतीत से सीखते रहें और भविष्य की दिशा में क़दम बढ़ाते जाएँ।
  4. छोटे-छोटे लक्ष्य बनाए और उनके पूरा होने पर मिलने वाली ख़ुशियों को महसूस करें। इन छोटी-छोटी ख़ुशियों को सेलिब्रेट करना न भूलें।
  5. नए साल में दूसरों के विचारों का सम्मान करने की आदत विकसित करें। 'अनेकांतवाद' से उपजे धैर्य और सहिष्णुता जैसे गुण आपके व्यक्तित्व की मेच्योरिटी को बढ़ाएँगे। विचारों की अति (extreme) से बचते हुए 'मध्यम मार्ग' अपनाएँ।
  6. भरपूर पुरुषार्थ करें पर फल (परिणाम) को लेकर बहुत ज़्यादा चिंतित न हों। नतीजों में आसक्त (attach) न होकर 'निष्काम कर्मयोग' को विकसित करने का अभ्यास करें।
  7. नए दोस्त बनाएँ पर पुराने रिश्तों को भी निभाना सीखें। 'लाख मुश्किल ज़माने में है, रिश्ता तो बस निभाने में है।' परिवार और दोस्तों के साथ 'क्वालिटी टाइम' बिताएँ।
  8. एक-दूसरे के काम आएँ और परस्पर सहयोग की आदत विकसित करें। तत्वार्थ सूत्र में लिखा भी है- 'परस्परोपग्रहो जीवानाम'
  9. कोशिश करें कि किसी ज़रूरतमंद की मदद कर पाएँ। 'Joy of Giving' यानी देने के सुख का कोई मुक़ाबला नहीं है। किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने पर आपको जो संतोष मिलेगा, वह अतुल्य है। मिसाल के तौर पर, वक़्त मिलने पर वंचित बच्चों को पढ़ाना उनके जीवन में बदलाव ला सकता है।
  10. अपनी रूचियों/शौक़/ हॉबीज़ को जिएँ। हमेशा कुछ नया सीखने की ललक बनाए रखें। सीखने में हिचकिचाएँ नहीं और श्रेष्ठ विचारों को सभी दिशाओं से आने दें। ऋग्वेद में लिखा भी है- 'आ नो भद्रा क्रतवो यंतु विश्वत:।'
ये उपर्युक्त दस संकल्प रातोंरात विकसित नहीं होंगे। मैं भी निरंतर इनका अभ्यास करता हूँ। आप भी इन्हें प्रैक्टिस में लाएँ, फिर देखिए, आपका जीवन कितना ऊर्जावान, सुखमय और सहज होता जाएगा।
अंत में इसी सकारात्मकता से भरपूर मेरी एक कविता, जो UPSC परीक्षा की तैयारी के दिनों में मैंने नववर्ष की पूर्व संध्या पर लिखी थी:-
सकारात्मक सोच -

सकारात्मक सोच संग उत्साह और उल्लास लिए,
जीतेंगे हर हारी बाज़ीमन में यह विश्वास लिए। 

ऊहापोह-अटकलें-उलझनेंअवसादों का कर अवसान,
हों बाधाएं कितनी पथ मेंचेहरों पर बस हो मुस्कान। 

अंतर्मन में भरी हो ऊर्जानई शक्ति का हो संचार,
डटकरचुनौतियों से लड़करजीतेंगे सारा संसार। 

लें संकल्प सृजन का मन मेंउम्मीदों से हो भरपूर,
धुन के पक्के उस राही सेमंज़िल है फिर कितनी दूर। 

जगें ज्ञान और प्रेम धरा परगूंजे कुछ ऐसा सन्देश,
नई चेतना से जागृत होसुप्त पड़ा यह मेरा देश। 

आप सबको नववर्ष 2017 की ढेर सारी मंगल शुभकामनाएँ!!!
Happy New Year🌾🍃🌲☘🎈🎉✨🎁




Saturday 24 December 2016

'दंगल'- म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के?

'दंगल' : म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के? 

खेल का मतलब सिर्फ़ क्रिकेट से लेने वाले करोड़ों भारतीयों को इतनी देर तक कुश्ती के मैच दिखाना और उसके नियम-क़ायदे तक सिखा देना आमिर खान के बस की ही बात है। हरियाणा जैसे सूबे में अपनी बेटियों को पहलवान बनाने का सपना देखना और उसे दिन-रात जीना कोई महावीर सिंह फोगट से ही सीखे। 
मेरी समझ में इस बेहतरीन मूवी के क्या-क्या निहितार्थ हैं और क्या-क्या सीखना हमारे लिए भी काम का हो सकता है, आइए जानें :-
  1. किसी भी बड़ी चाहत को सच करने के लिए थोड़ा जुनून तो चाहिए ही। कुछ पाने के लिए काफ़ी कुछ खोना भी पड़ता है। याद है ना, जयशंकर प्रसाद ने भी लिखा है-"महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीप में पलता है।"
  2. जीवन में थोड़ी सी सफलता आगे बड़ी सफलताओं का रास्ता खोल सकती है, बशर्ते आप बौखलाए बग़ैर सहज रहें। गीता-बबीता फोगट के पिता एक संवाद में कहते भी है, "बस एक बात कभी मत भूलना कि तू यहाँ तक पहुँची कैसे?"
  3. लोगों की फ़िज़ूल की बातों के चक्कर में पड़ने वाले लम्बी रेस के घोड़े नहीं बन पाते। इधर-उधर की नकारात्मक बातें बनाने वाले कम नहीं, पर उन्हीं के बीच आपकी मदद करने को तत्पर लोग भी मिल ही जाते हैं।
  4. गीता को ट्रेनिंग देने वाले तथाकथित इंटरनेशनल लेवल के कोच का कैरेक्टर भी बहुत कुछ सिखाता है। झूठा श्रेय लेने, आपको निरंतर हतोत्साहित करने और झूठी ईगो में जीने वाला व्यक्ति आपको तंग करने की ख़ातिर किसी भी हद तक जा सकता है। ऐसे में रहीम के एक दोहे में इस समस्या का समाधान भी छिपा है-
         "रहिमान ओछे नरन सों, बैर भली न प्रीत,
          काटे-चाटे स्वान के, दोऊं भाँति विपरीत।"
         कुल मिलाकर ऐसे लोगों से एक सुरक्षित दूरी बनाए रखना ही बेहतर है।
     5- आख़िरी और बेहद ज़रूरी बात- 'कभी भी अपने व्यक्तित्व की मौलिकता न खोयें'। सहवाग हैं तो सहवाग ही रहें, द्रविड़ बनने के चक्कर में अपने भीतर के 'सहवाग' को अनदेखा न करें। कहने का मतलब है कि नया ज़रूर सीखें, पर अपने 'स्वत्च' या मूल स्वरूप को खोने की क़ीमत पर नहीं। मैंने कहीं पढ़ा था:
"ना किसी के 'अभाव' में जियो, ना किसी के 'प्रभाव' में जियो,
ये ज़िंदगी है आपकी, इसे अपने 'स्वभाव' में जियो।"
(यह कोई टिपिकल फ़िल्म समीक्षा नहीं है। वैसे अगर इसे मूवी देखने के बाद पढ़ने वाला ज़्यादा एप्रिशियेट कर पाएँगे।)







Friday 2 December 2016

परस्परोपग्रहो जीवानाम

ज़िंदगी की राह बहुत सारे उतार-चढ़ावों और सम-विषम परिस्थितियों से भरी है। आप बेहतरी के लिए जो भी प्रयास करते हैं, उनमें कोई न कोई बाधा आती ही है। कभी-कभी आप महसूस करते हैं कि मुश्किल वक़्त में किसी दोस्त या सम्बंधी की मदद से आप उस परेशानी का सामना कर पाए और फिर से आपने ज़िंदगी की लय पकड़ ली। आप यह भी महसूस करते हैं कि अगर इस वक़्त में कोई अपना या कोई अच्छा दोस्त आपका साथ देता तो शायद आप उस मुसीबत से जल्दी और आसानी से निकल जाते।
कभी-कभी हम यह भी पाते हैं कि ज्ञान और अनुभव का महासागर अनंत और विराट है और हम सबने अभी मुश्किल से इस सागर में एक-एक डुबकी ही लगाई है। अतः किसी एक इंसान के लिए इस विराट सागर की थाह पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। शायद इसीलिए प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात ने एक बार कहा था- 'मैं सबसे ज़्यादा ज्ञानी इस अर्थ में हूँ कि मैं ये जानता हूँ कि मैं कुछ भी नहीं जानता।' यानी सुकरात को अपनी अल्पज्ञता और अकिंचनता का बोध हो गया था और वे इस बात को महसूस कर चुके थे कि उन्होंने इस विराट महासागर की एक बूँद ही चखी है।
लिहाज़ा हम भी सुकरात जितने ज्ञानी भले ही न हों, पर हम यह महसूस तो करते ही हैं कि हम ज्ञान और अनुभव के इस विराट महासागर की थाह अकेले अपने दम पर नहीं पा सकते। हम इतना समझते हैं कि हमारी जानकारी और समझ का दायरा सीमित है और देश-काल-परिस्थितियों की कुछ सीमाएँ हैं, जिनके चलते हम कभी भी सब कुछ नहीं जान सकते। यहाँ यह भी समझना ज़रूरी है कि न तो इस जगत में सर्वज्ञ बनना सम्भव है और न ही वांछनीय।
इस सम्बंध में जैन दर्शन के आचार्य उमास्वामी ने 'तत्वार्थ सूत्र' में एक सूत्र लिखा था- 'परस्परोपग्रहो जीवानाम।' इसका अभिप्राय है कि 'इस जगत में प्राणी एक दूसरे के सहयोग से लाभान्वित होते हैं।' (Living beings benefit by helping each other.) यह सूत्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की प्रक्रिया में भी उतना ही काम आ सकता है जितना आम ज़िंदगी जीते हुए।
अक्सर तैयारी के दौरान हम सोचते हैं कि हमें जो पता है, वो किसी को नहीं पता और हमें अपना ज्ञान और अनुभव सबसे छिपाकर रखना चाहिए। कुछ लोग यहाँ तक भी सोचते हैं, कि अगर मैंने अपने विचार/नोट्स/किताब/रणनीति किसी दोस्त या सहपाठी से साझा कर ली, तो कहीं उसके अंक मुझसे ज़्यादा न आ जाएँ। अगर किसी ने मेरे ज्ञान का फ़ायदा उठा लिया और वह मुझसे पहले परीक्षा में सफल हो गया, तो क्या होगा?
प्रिय दोस्तों, यह सोच एक संकुचित सोच है, जो आपको आगे बढ़ाने के स्थान पर पीछे की ओर धकेलती है। इस तरह की सोच से न तो आपका कोई भला होने वाला है और न ही किसी और का। वास्तविकता तो यह है कि सिविल सेवा परीक्षा की प्रकृति कुछ ऐसी है कि इसमें प्रत्येक अभ्यर्थी के अंक उसके अपने अध्ययन और कौशल के आधार पर आते हैं, न कि महज़ किसी का अनुकरण करने से।
बल्कि मैं तो यह कहूँगा कि इस प्रतिष्ठित परीक्षा के नवीनतम पैटर्न में 'परस्परोपग्रहो जीवानाम' का सूत्र बहुत काम का है और आपकी तैयारी को अधिक व्यापक, डायनमिक और समग्र बना सकता है। अगर किसी टॉपिक विशेष पर आप बेहतर जानते हैं और किसी अन्य टॉपिक पर आपके किसी साथी की समझ अच्छी है, तो आप दोनों मिलकर एक-दूसरे के सहयोग से लाभान्वित हो सकते हैं। 'ग्रुप डिस्कशन' इसका एक बेहतरीन तरीक़ा है। ग्रुप डिस्कशन से ज्ञान और समझ तो बढ़ती ही है, साथ ही बोलने और सुनने का कौशल भी विकसित होता है। इस तरह सिविल सेवा परीक्षा में आप अपेक्षाकृत फ़ायदे की स्थिति में होते हैं।
शास्त्र कहते हैं कि 'विद्या ही एकमात्र ऐसा धन है, जो बाँटने पर बढ़ता है।' यह एक बहुत दिलचस्प बात है। मैंने तैयारी के दौरान बहुत बार यह महसूस किया कि मैं अपने पढ़ी हुई विषयवस्तु को किसी अन्य अभ्यर्थी के साथ बाँट पाऊँ। मनोविज्ञान भी मानता है कि अगर हम अपना ज्ञान किसी से शेयर करते हैं, तो हम उस ज्ञान को लम्बे समय तक मस्तिष्क में स्टोर कर पाते हैं। किसी से कुछ सुनना और किसी को कुछ सुनाना, दोनों ही चीज़ों को याद रखने में मदद करते हैं। साथ ही, पढ़ा हुआ या सीखा हुआ ज्ञान शेयर करने से हमें भी उसके नए आयाम पता चलते हैं, जो शायद हमने पहले सोचे भी नहीं थे। इंग्लिश की एक कहावत भी है-
"Tell me and I forget,
Teach me and I remember,
Involve me and I learn."
'तत्वार्थ सूत्र' का यह सूत्र पढ़ाई में ही नहीं, तैयारी की लम्बी और थकाऊ प्रक्रिया की बाक़ी जटिलताओं में भी आपके काम आता है और आपका मनोबल भी बढ़ाता है। मिसाल के तौर पर, मैं अपने कुछ ऐसे साथियों को जानता हूँ, जो इस तैयारी के दौरान मिलने वाली असफलताओं या तनावों से बहुत प्रभावित हो गए और लगभग अवसाद या डिप्रेशन जैसी हालत में पहुँच गए। ज़िंदगी की दौड़ में अकेले आगे बढ़ने में कोई बुराई भी नहीं है, पर नितांत एकाकी हो जाना कभी-कभी समस्या का कारण बन जाता है। आप अपनी चिन्ताएँ/ तनाव/परेशानियाँ/ ख़ुशियाँ/ मस्तियाँ यदि कभी किसी से साझा नहीं करते, तो आप भीतर ही घुटने लगते हैं और यह स्थिति कभी-कभी जब ज़्यादा बढ़ जाती है, तो मनोविकारों में परिणत हो जाती है। जबकि यदि आप एक-दूसरे का सहयोग करते हुए, हँसते-मुस्कुराते, आगे बढ़ते हैं, तो ज़रूरत या तनाव की स्थिति में आपका साथ देने के लिए आपके परिजन, दोस्त और सहपाठी आपके साथ होते हैं। मत भूलिए कि महाबली हनुमान को भी उनकी भूली-बिसरी शक्तियाँ याद दिलाने के लिए जाम्बवंत को 'का चुप साधि रहा बलवाना' कहना पड़ा था।
साथ-साथ क़दम बढ़ाना का यह संदेश हमारे वेदों में भी दिया गया है-
'सं गच्छ्ध्वम सं वदध्वम सं वो मनांसि जानताम।'
यानी साथ-साथ चलो, साथ-साथ बोलो और साथ-साथ एक दूसरे के मन को समझो। इसका अर्थ यदि थोड़ी गहराई से समझें, तो हम जान पाएँगे कि ज़िंदगी की राह में हमारा एक-दूसरा का साथ देना या एक-दूसरे के काम आना कितना ज़रूरी है। विशेषकर, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में तो यह बहुत उपयोगी है। एक-दूसरे से अपना ज्ञान-अनुभव-समझ-कौशल बाँटने से ये सभी बढ़ते ही हैं, घटने का तो कोई सवाल ही नहीं है।
किसकी मदद की कब ज़रूरत पड़ जाए, या कौन कब आपके काम आ जाए, इसका कुछ पता नहीं। कभी-कभी तो किसी परीक्षा या अवसर की जानकारी हमें किसी और से ही होती है। इसी तरह कभी-कभी हम किसी की मदद से ही तैयारी की सही दिशा और गति पकड़ पाते हैं। दोस्तों, 'बूँद-बूँद से ही सागर भरता है। एक-दूसरे के सहयोग से एक परस्पर प्रेम और सौहार्द का अद्भुत वातावरण बनाएँ और ज्ञान व सूचना की नवीन क्रांति
से लाभान्वित हों।
शुभकामनाएँ!!!