Monday 30 May 2016

'संगम': a poem for Inter Services Meet 2016 at LBSNAA

संगम (Inter Services Meet 2016)
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खेल-खेल में खोलें दिल की, सारी परतें आज,
इक-दूजे के संग संजों लें, खट्टी-मीठी याद।

लाल-लाल से बादल ऊपर, नीचे धानी चादर,
दूर क्षितिज पर ढलता सूरज, कहता नीचे आकर,
आओ मिलकर संग बजाएं, दिल के सारे साज। 

रिश्तों की गरमाहट महके, जीवन भर हम सबमें,
इन मुस्कानों की मिठास, बस जाए अंतर्मन में,
'संगम' में कह दें खुलकर, अपने मन की आवाज़। 

कविता- अभी उजाला दूर है शायद....

कविता- अभी उजाला दूर है शायद

दीवाली -दर- दीवाली ,
दीप  जले, रंगोली दमके,
फुलझड़ियों और कंदीलों से,
गली-गली और आँगन चमके।
लेकिन कुछ आँखें हैं सूनी,
और अधूरे हैं कुछ सपने,
कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी,
ताक रहे गलियारे अपने।
खाली-खाली से कुछ घर हैं,
कुछ चेहरों से नूर है गायब,
अलसाई सी आँखें तकतीं,
अभी उजाला दूर है शायद।
थकी-थकी सी उन आँखों में,
आओ थोड़ी खुशियाँ भर दें,
कुछ मिठास उन तक पहुँचाकर,
कुछ तो उनका दुखड़ा हर लें।
कुछ खुशियाँ और कुछ मुस्कानें,
पसरेंगी हर सूने घर में,
मुस्कुराहटें-खिलखिलाहटें,
मिल जाएँगी अपने स्वर में।
तभी मिटेगा घना अँधेरा,
तभी खिलेंगे वंचित चेहरे,
रोशन होंगी तब सब आँखें,
तभी खिलेंगे स्वप्न सुनहरे।
—- निशान्त जैन

कविता- आओ मन की परतें खोलें...

Village Visit के दौरान हिमगिरि की गोद में लिखी एक छोटी सी कविता –
आओ मन की परतें खोलें
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लाल-लाल से बादल ऊपर,
और नीचे धानी सी चादर,
दूर क्षितिज पर ढलता सूरज,
क्या कहता है हौले-हौले।
आओ मन की परतें खोलें।
जिनका जीवन है पहाड़ सा,
पर चेहरों पर मुस्कानें हैं,
उन मुस्कानों की मिठास को,
आओ अपने संग संजो लें।
आओ मन की परतें खोलें।
मिट्टी की सोंधी खुशबू में,
जीवन की हर महक बसी है,
इस मिट्टी का कतरा-कतरा,
लेकर जीवन में रस घोलें।
आओ मन की परतें खोलें।
रिश्तों की मीठी गरमाहट,
अरमानों की नाज़ुक आहट,
खोल के रख दें दिल की टीसें,
मिलकर हँस लें, मिलकर रो लें।
आओ मन की परतें खोलें।

Sunday 29 May 2016

अकादमी में हिन्दुस्तानी संगीत की जुगलबंदी 'Jugalbandi': an evening of Hindustani music

जुगलबंदी Jugalbandi
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अकादमी में प्रशिक्षण की एकरसता से बचने और साथ ही सांस्कृतिक विरासत के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने के लिए प्रशिक्षु अधिकारियों की 'फाइन आर्ट्स सोसाइटी' द्वारा हिन्दुस्तानी संगीत को समर्पित एक शाम 'जुगलबंदी' का आयोजन किया गया।
यह अद्भुत जुगलबंदी थी हिन्दुस्तानी संगीत के तीन प्रमुख वाद्य यंत्रों; सारंगी, बांसुरी और तबले की, और संगत कर रहे थे, क्रमशः मुरादाबाद घराने के उस्ताद कमाल साबरी (सारंगी), बनारस घराने के पंडित अजय प्रसन्ना (बांसुरी) और युवा कलाकार शब्बीर (तबला)।

हममें से बहुतों के लिए उत्तर भारत की इस संगीत धारा से यह पहला परिचय था।
शुरुआत हुई सारंगी के आलाप से, जिस पर बांसुरी ने संगत दी। धीरे-धीरे यह संगीतमयी शाम परिपक्वता की ओर बढ़ने लगी और तबले की थाप की ताल भी पूरी रिदम के साथ शाम को उसकी पूर्णता तक पहुँचाने लगी। कभी सारंगी की लय तीव्र होती तो उसी की लय में तबले की थाप गूंजती तो कभी बांसुरी की तान और तबले की थाप स्वर मिलाते, तो कभी तीनों वाद्य यंत्र पूरे रौ में दीखते।
श्रोताओं की तालियां भी निरंतर शाम को जीवंत बना रही थीं। उधर तीनों कलाकारों के वाद्य यंत्रों की लय के अनुरूप उनकी भाव-भंगिमाएँ कार्यक्रम को और रोचक बना रही थीं।
कुल मिलाकर यह एक अद्भुत और कुछ सीमा तक अलौकिक अनुभव था। सचमुच संगीत आपको खुद के करीब लाने में सक्षम है, इसमें कोई संदेह नहीं।


कविता- 'मेरी अम्मा' A tribute to my Grandmother

'मेरी अम्मा'

मेरी अम्मा मेरी हिम्मत और मेरी पहचान,
तुमसे महके शान हमारी, तुमसे हो सम्मान।।

--कोई सीखे तुमसे रिश्तों का संसार निभाना,
बड़ी -बड़ी बातों को छोटा समझ यूँ ही बिसराना,
संबंधों की ऊर्जा से हो रोशन तेरा नाम।

--सबको साथ में लेकर चलना और फिर भी मुस्काना,
हर मुश्किल से लड़ना फिर भी बिलकुल ना घबराना,
रहे सलामत जज़्बा ये, हम सबका है अरमान।

--सिर पर मेरे हाथ हमेशा, यूँ ही रहे तुम्हारा,
आँगन में खुशियों का यूँ ही बना रहे उजियारा,
अपनी छाया रखना हम पर, करना ये अहसान।

--तेरी महक महकती जाये, धरती और गगन में,
तेरी चमक चमकती जाये, दुनिया के अांगन में,
यही कामना है तुमसे हो, हम सबकी पहचान।

'अकादमी में एक शाम, सूफी संगीत के नाम' An Evening with Kailash Kher

अकादमी में एक शाम, सूफी संगीत के नाम:

अकादमी में पिछले दिनों सूफी संगीत के भारतीय गायक कैलाश खेर आये। फाइन आर्ट्स सोसायटी के इस आयोजन में कैलाश खेर ने अपनी खनकती आवाज़ और सूफियाना अंदाज़ का जादू जमकर बिखेरा।

कार्यक्रम की खूबी यह थी कि कैलाश खेर ने अपने संघर्ष के समय और सफलता मिलने  के बाद के खट्टे-मीठे अनुभव भी प्रशिक्षणार्थी अधिकारियों से साझा किये। सचमुच कैलाश खेर एक कमाल के गायक और संगीतकार होने के साथ ही एक बेहतरीन इंसान भी हैं। जीवन के शुरूआती दिनों में बेइंतहा संघर्षों से जूझने वाले कैलाश खेर आज भी ज़मीन से उतना ही जुड़े हैं। देसी अंदाज़ में हँसते-गाते जीवन के मन्त्र दे देना उनकी खासियत है। मस्तमौला सूफी व्यक्तित्व के कैलाश 'अल्लाह के बन्दे हँस दे' कहकर हर निराशा से उबरने और हरदम मुस्कुराने की प्रेरणा देते हैं।


सम्पूर्णानंद सभागार में प्रशिक्षणार्थी अधिकारियों से रु-ब-रु होते हुए उन्होंने अपने कला-संस्कृति के संरक्षण और विरासत को सहेजने की अपील भी की। भारत सरकार के 'स्वच्छ भारत अभियान' से जुड़े श्री कैलाश खेर को कार्यक्रम के अंत में निदेशक श्री राजीव कपूर ने स्मृति चिह्न भेंट किया। संचालन निशान्त जैन और संयोजन महेंदर सिंह तंवर ने किया।

Travelogue: 'भारत दर्शन'(Winter Study Tour) IAS 2015 Batch

'भारत दर्शन' : 'अपनी धरती, अपने लोग' -
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''धूप में निकलो, घटाओं में नहाकर देखो
जिंदगी क्या है, किताबों को हटाकर देखो।''

निदा फाजली साहब की ये पंक्तियां यूं तो हमेशा मुझे अपील करती थीं, पर इन्हें सही मायने में साकार करने का मौका मिला, हम प्रशिक्षु IAS अधिकारियों के विंटर स्टडी टूर के दौरान, जिसे 'भारत दर्शन' के नाम से जाना जाता है।
यूं तो अपना भारत इतना वैविध्यपूर्ण, विराट और बहुरंगी है कि दो महीने के समय में इसकी पूरी झलक भी नहीं मिल सकती। लेकिन हम 58 दिनों में देश के 16 राज्यों/केंद्रशासित क्षेत्रों का भ्रमण कर सके। इस दौरान हमने कोशिश की, देश की नब्ज पकड़ने की, मुल्क की प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक, औद्योगिक, आध्यात्मिक विशिष्टताओं को महसूस करने की और साथ ही कोशिश की, गांधीजी के बताए जंतर के मुताबिक आखिरी छोर पर खड़े आम आदमी के मन की थाह लेने की। 
हमारा यह भारत दर्शन महज पर्यटन स्थलों की सैर या प्रकृति की सुंदरता की झलक लेने तक सीमित नहीं, बल्कि समग्र भारत का दर्शन था। इसका मतलब था, इस विराट देश की अद्भुत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता, देश के राजनीतिक, प्रशासनिक और लोकतांत्रिक व पंचायती ढांचे की समझ; जल-थल-वायु सीमाओं के प्रहरी सैन्य व अर्धसैनिक बलों के जीवट और जज्बे का अनुभव; पहाड़, दर्रे, पठार, नदी, सागर, द्वीप समेत हर भौगोलिक विविधताओं का अहसास; मुख्यधारा से कटे जनजातीय व हाशिये के लोगों की जिन्दगियों की झलक; उग्रवाद व चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों की जिन्दगी के मुश्किल हालातों की समझ; और कृषि, उद्योग, ऊर्जा, संचार, परिवहन, ग्रामीण व शहरी विकास जैसे तमाम क्षेत्रों में देश की लंबी विकास यात्रा और सरकारी व गैर-सरकारी प्रयासों की समग्र समझ विकसित करना। दिसंबर, 2015 के अंत मसूरी की कड़ाके की ठंड के बीच हम निकले अपनी इस अद्भुत, विराट और वैविध्यपूर्ण यात्रा के लिए। हमारे भारत दर्शन का पहला पड़ाव था बुद्ध और महावीर के विहार की भूमि ‪#‎बिहार‬। राजधानी पटना रेलवे स्टेशन पर भीड़-भाड़ में एक अजीब सी रौनक थी। अतिथि गृह में सामान रखा और निकल पड़े घूमने और कुछ नया सीखने। बाढ़ कस्बे में NTPC संयंत्र का अवलोकन कर इसकी कार्यप्रणाली समझी, तो वहां की मशहूर मिठाई लाई का भी स्वाद चखा। शाम को खाए लिट्टी-चोखा का जायका भुलाए नहीं भूलता। पटना में अगले दिन हमने कलेक्ट्रेट परिसर, पुलिस हेल्पलाइन, आईसीएआर और बिहार पावर कॉरपोरेशन का भ्रमण कर प्रशासन के कुछ नए सबक सीखे। रात को पटना साहिब गुरुद्वारा में मत्था टेका। गुरू गोविंद सिंह के जन्मस्थान का दर्शन स्वंय में एक अनूठा अनुभव था।
बिहार में नालंदा और गया भी गए। सुबह-सुबह कोहरे में पटना से नालंदा तक की यात्रा लाजवाब थी। खासकर सड़क की गुणवत्ता जबर्दस्त थी। हिंदू-बौद्ध-जैन धर्मों के तीर्थस्थल राजगीर का भ्रमण सचमुच अद्भुत था। यहां हर कदम पर कोई ना कोई सांस्कृतिक स्थल है। हमने यहां विश्व शांति स्तूप, घोड़ा कटोरा और प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष देखे। राजगीर के इस स्तूप तक जाने के लिए बना रोप-वे, दरअसल देश का सबसे पुराना रोप-वे है। नालंदा विश्वविद्यालयों के भग्नावशेषों को देखकर आप विस्मित हुए बिना नहीं रह पाते। क्या हजारों साल पहले भी इतनी विकसित शिक्षा प्रणाली हो सकती है ? नालंदा में हमने थीम पार्क पांडु पोखर का भी भ्रमण किया। यहां झील के बीच महाभारत के पात्र राजा पाण्डु की विराट प्रतिमा भी है। इस झील के किनारे ठंडी हवा भरे खूबसूरत मौसम को छोड़कर जाने का मन नहीं हो रहा था। अगले दिन सुबह तीर्थंकर महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी स्थित विख्यात जलमंदिर के दर्शन भी किए। विशाल तालाब के बीचोंबीच मंदिर और तालाब में असंख्य कमल व बत्तखों की वजह से पूरा परिसर बेहद सुंदर लग रहा था। राजगीर में हमें बिहार के माननीय मुख्यमंत्री जी, श्री नीतीश कुमार से भी मिलने का मौका मिला। उन्होंने अपने अनुभव हमसे साझा किए और बिहार की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत को संजोने पर बल दिया। उनकी स्मरणशक्ति, विनोदप्रियता और वैविध्यपूर्ण ज्ञान का भी जवाब नहीं। मुख्यमंत्री जी से सुशासन का पाठ सीखने के बाद हम गया के लिए रवाना हो गए। गया में चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में तैनात कोबरा बटालियन का दौरान किया। कोबरा बटालियन अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह मुस्तैद है। जवान किस प्रकार विषम परिस्थितियों में भी पूरे उत्साह के साथ अपनी धुन में लगे हैं, यह काबिले-तारीफ है। बोधगया में बुद्ध के ज्ञान की भूमि पर महाबोधि मंदिर के दर्शन करना एक आध्यात्मिक अनुभव था। ध्यानस्थ बुद्ध किसी के भी मन को परमशांति की ओर ले जाते हैं। विदेशी श्रद्धालु बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान और आत्मचिंतन में रत थे। सचमुच अलौकिक और अद्धभुत! 
विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों को नमन करके हम खनिजों के राज्य ‪झारखंड‬ की ओर रवाना हो गए।
झारखंड में हमारा प्रवास LWE प्रभावित जिलों लातेहार और बोकारो में रहा। लातेहार का भ्रमण किया। LWE प्रभावित क्षेत्रों की समस्याओं को यहां समझा जा सकता है। यह भी कि इन क्षेत्रों में पर्यटन व रोजगार सजृन की अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरत है, तो उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की। नेतरहाट के अनूठे सूर्योदय का आनंद लेकर स्टील सिटी बोकारो पहुंचे। बोकारो स्टील व थर्मल प्लांट के कारण नगर का पर्याप्त विकास हुआ है। बिहार और झारखंड के बारे में हमारे नजरिए काफी बदलाव हुआ है। दोनों राज्यों में पर्याप्त विकास हुआ है। अगर आप इनके बारे में किसी स्टीरियोटाइप सोच के शिकार हैं, तो आपको दोबारा सोचना पड़ सकता है। 
झारखंड से सीधे हमने अनेदखे-अनछुए स्वर्ग भारत के ‪#‎पूर्वोत्तर‬ में प्रवेश किया। पूर्वोत्तर में सबसे पहले हमारा आर्मी अटैचमेंट था। डिब्रूगढ़ से शुरु हुआ यह आर्मी अटैचमेंट ‪#‎अरुणाचल‬ के आखिरी छोर पर चीन बॉर्डर तक जाकर खत्म हुआ। एक हफ्ते तक सैन्यबलों के जवानों और अधिकारियों के साथ रहना, उनके जीवन, जज्बे और भावनाओं को नजदीक से समझना एक अविस्मरणीय अनुभव था। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में स्लीपिंग बैग में कंपकंपाते हुए रात बिताना, अंधेरी रात में नदी किनारे पेट्रोलिंग, पहाड़ों पर खतरनाक रास्तों पर ट्रैक, निशानेबाजी द्वारा लक्ष्य साधने का अभ्यास, ट्रकों में बैठकर बॉर्डर पर जाना और भारत की आखिरी ऑब्जरवेशन पोस्ट पर चढ़कर उस पार चीन को देखना हमारे आर्मी अटैचमेंट के कुछ यादगार पलों में से एक था। 
2 माउंटेन डिवीजन के अन्तर्गत, 11 ग्रेनेडियर्स, 10 सिख, आर्मी एविएशन, 8 जाट समेत अनेकों यूनिटों में देश की रक्षा चुनौतियों और संबंधित तैयारियों को समझना और अपने वीर जवानों के शौर्य के प्रति संवेदनशील होना, इस अटैचमेंट का उद्देश्य भी था, और उपलब्धि भी।
इसके बाद हम ‪#‎असम‬ के तिनसुकिया जिले पहुंचे। चाय के बागानों की धरती पर चारों और प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा है। हम मोंगुरी बील गए, जहां नौका विहार कर पक्षियों की अनेकों प्रजातियों को करीब से देखना दिलचस्प था। डिगबोई की तेल रिफाइनरी और मार्घेरिटा की कोयला खानें बताती हैं कि राष्ट्र के निर्माण में सबकी अपनी-अपनी प्रभावी भूमिका है।
उत्तर-पूर्व के सौन्दर्य के साकार स्वरूप ‪#‎मेघालय‬ में हमारा प्रवेश हुआ। शिलांग एक बेहद शांत और सुंदर नगर है। बारिश के बीच हम एशिया के सबसे स्वच्छ गांव मालिनोंग पहुंचे। रास्ते में पहाड़ों के बीच तैरती धुंध देखकर लगता है कि हम बादलों के बीच हैं। सचमुच 'मेघालय' नाम सार्थक प्रतीत होता है। विस्मित कर देने वाले 'लिविंग रूट ब्रिज' और बांस का बना 'स्काईवॉक' स्वंय में रोमांचक अहसास कराते हैं। 
पूर्वोत्तर की इस यात्रा का आखिरी पड़ाव था ‪#‎त्रिपुरा‬। क्लाउडेड लेपार्ड नैशनल पार्क में चश्मे वाले बंदर हों या फिर स्नेक शो में पूर्वोत्तर के सांपों की प्रजातियों का प्रत्यक्ष अवलोकन, त्रिपुरेश्वरी मंदिर के दर्शन हों या फिर स्थानीय बांस के हस्तशिल्प का अवलोकन, त्रिपुरा मेरे दिल में बस गया। अगरतला को छोड़कर जाने का मन नहीं था। यहां माननीय मुख्यमंत्री जी श्री माणिक सरकार से विकास के मंत्र सीखकर हम सीधे पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए।
ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी रहा ‪#‎कोलकाता‬ आज भी स्वंय में ब्रिटिश राज की यादें संजोए हुए है। विक्टोरिया मैमोरियल भारत में ब्रिटिश शासन के दौर की दास्तां कहता है। दुर्गापूजा के लिए विश्वप्रसिद्ध इस नगर के दक्षिणेश्वरी और कालीघाट मंदिर मातृशक्ति के प्रति श्रद्धा के भाव से भर देते हैं। कोलकाता की जीवनरेखा हावड़ा ब्रिज पर असंख्य लोगों की भाग-दौड़ भरी जिंदगी को आप ठिठक कर देखते रह जाते हैं, तो पार्क स्ट्रीट की चाय, गपशप और रौनक आपको यहां से जाने नहीं देती। सचमुच कोलकाता भारत की सांस्कृतिक राजधानी और 'सिटी ऑफ जॉय' है। यहां हमने 'गार्डन रीच शिप बिल्डर्स' भी देखा और गणतंत्र दिवस भी मनाया। भव्य गणतंत्र दिवस परेड देखकर हम सीधे पहुंचे सुदूर पूर्व और दक्षिण में स्थित ‪#‎अंडमान‬-निकोबार द्वीप समूह। पोर्ट ब्लेयर एयरपोर्ट पर उतरते ही भारी गर्मी और आर्द्रता का अहसास हुआ। सेल्युलर जेल में लाइट एंड साउंड शो ने जीवंत कर दिया ब्रिटिश राज में क्रांतिकारियों को दी जाने वाली कालेपानी की सजा के जुल्मो-सितम को। अंडमान में हमारा नौसेना और तटरक्षक बल का भी अटैचमेंट था। नौसेना के जहाज पर समुद्र में जाकर नौसेना की तत्परता और मुश्किलों को समझना रोमांचक था। कोस्ट गार्ड भारतीय तटों की निगरानी के काम में पूरी ऊर्जा के साथ तत्पर हैं। 
द्वीप की भौगोलिक परिस्थितियों और जीवन को समझने हम हैवलॉक द्वीप गए। यहां स्कूबा डाइविंग से लेकर राधानगर और काला पत्थर बीच पर मस्ती तक काफी दिलचस्प एक्सपीरियंस रहा। यहां इतना मन लगा कि यहां से जाने का मन नहीं था। खासकर राधानगर बीच तक स्कूटर की ड्राइव और दोनों ओर नारियल के पेड़ों से आती मीठी-मीठी हवा मैं कभी नहीं भूल सकता। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह कुछ मायनों में पूरे देश के लिए अनुकरणीय उदाहरण है। परस्पर मैत्री, कोई सांप्रदायिक या भाषायी तनाव नहीं। ऐसी विशेषताएं इस द्वीप समूह को विशिष्ट बनाती हैं। यहां की संपर्क भाषा हिंदी है और विविध भाषा-भाषी लोग परस्पर प्रेम से हिंदी का व्यवहार करते हैं।

अंडमान के बाद हमने दक्षिण भारत में प्रवेश किया। ‪चेन्नई‬ एक बड़ा और सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध शहर है। वहां की सड़कें, खाना-पीना और खुद की विरासत को संजोने की प्रवृति प्रशंसनीय भी है और अनुकरणीय भी। राजकीय संग्रहालय और कोर्ट म्यूजियम, मरीना बीच और विवेकानंद हाउस, कपालीश्वर और पार्थसारथी मंदिर, तमिलनाडु की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत के साक्षी हैं। अगर आपको मंदिरों की स्थापत्य कला देखनी है, तो दक्षिण आ जाएं। चेन्नई में हमने प्राइवेट सेक्टर की कम्पनियां अशोक लीलैंड और टी.वी.एस. के परिसरों का भी भ्रमण किया और सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टिट्यूट का योगदान भी समझा। रही बात दक्षिण भारतीय भोजन की, तो मैं दक्षिण भारतीय थाली का बड़ा शौकीन था और पूरे दक्षिण प्रवास में मैंने एक बार भी नॉर्थ इंडियन भोजन की मांग नहीं की।
तमिलनाडु से हमने ‪#‎कर्नाटक‬ की राह पकड़ी। बेहद विकसित आईटी हब बेंगलुरु में ट्रैफिक जाम एक बड़ी समस्या है। शहर सुव्यवस्थित और आकर्षक है। हमने विज्ञान प्रोद्योगिकी संग्रहालय देखा तो लाल बाग बोटेनिकल गार्डन की भी सैर की। कर्नाटक विधानसभा भवन के स्थापत्य को देखकर कोई भी रोमांचित हो सकता है। भवन के मुख्य द्वार पर उत्कीर्ण वाक्य ‘Government Work is God's Work’ सेवा की प्रतिबद्धता की प्रेरणा देता है। अक्षय पात्र फाउंडेशन का अवलोकन कर हमने देश भर में मिड डे मील कार्यान्वन में उनकी नि:स्वार्थ भरी भूमिका को समझा, साथ ही 'जनाग्रह सेंटर फॉर सिटीजनशिप एंड डेमोक्रेसी' और नारायण हृदयालय परिसर का भी दौरा किया।
यहां से पहुंचे जुड़वा शहर सिकंदराबाद-‪‎हैदराबाद‬। हुसैनसागर झील के बीच आशीष देते बुद्ध बहुत अच्छे लगते हैं। चारमीनार इस शहर ही शान है। अगर चारमीनार के बाजार की रौनक नहीं देखी, तो कुछ नहीं देखा। हैदराबाद में हमारा वायुसेना का अटैचमेंट भी था। कॉलेज ऑफ एयर वॉरफेयर, नेविगेशन ट्रेनिंग स्कूल और भव्य वायुसेना अकादमी का भ्रमण कर सिमुलेटर, नाइट विजन, ऐरो मेडिसिन, विमानों की उड़ान और संचालन के कंट्रोल को समझा। 'Touch the sky with glory’ के मंत्र के साथ भारतीय वायुसेना ऊंचाईयों की ओर निरंतर बढ़ रही है। यहां हमने सी.एस.आई.आर. के केंद्र ‘सेंटर ऑफ सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी’ परिसर का भी अध्ययन भ्रमण किया। 
‪तेलंगाना‬ के दूसरे पड़ाव भद्राचलम (खम्मम) पहुंचे। राम के वनगमन मार्ग का प्रमुख स्थल भद्राचलम बड़ा तीर्थ है। यहां हमारा मंदिर ट्रस्ट प्रबंधन का अटैचमेंट भी था। भद्राचलम मंदिर के दर्शन के साथ-साथ राम लक्ष्मण, सीता के वनगमन की स्मृतियों की साक्षी ‘पर्णशाला’ भी गए। यहां का एक और अविस्मरणीय अनुभव था, सिंगरेनी की कोयला खानों में खुद भीतर जाकर कोयला खनन की प्रक्रिया को समझना। खम्मम जिला एक चरमपंथ प्रभावित जिला है। हमने जनजातीय क्षेत्रों में जाकर शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रयास देखे और ग्रामीण महिलाओं व छात्राओं से बात-चीत भी की। 
दक्षिण भारत की इस अविस्मरणीय यात्रा के बाद संतरों के शहर ‪नागपुर‬ में MIHAN और MOIL(मैंगनीज ऑर इण्डिया लि ) भ्रमण के माध्यम से औद्योगिक विकास की कहानी समझते हुए ‪मध्य‬ प्रदेश के ‪छिंदवाड़ा‬ पहुंचे। नवगठित नगर निगम की कार्यप्रणाली समझना और जनप्रतिनिधियों से चर्चा का अनुभव बहुत कुछ सिखा गया।
यहां से ‪‎दिल्ली‬ पहुंचे और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और नेशनल म्यूजियम का भ्रमण किया। 
अपने इस दो महीने के ‘भारत दर्शन’ के बारे में, अगर मैं ये कहूं कि यह मेरे जीवन का सबसे यादगार समय था, तो अतिश्योक्ति न होगी। जिंदगी में बहुत सारी चीजें पहली बार हुई हैं। न केवल नए सबक सीखे, बल्कि चेतना, भावबोध और संवेदना का विस्तार भी हुआ। जीवन को लेकर नजरिए में परिपक्वता आई और इस देश की विविधता में एकता की संस्कृति की जीवन्तता हमेशा-हमेशा के लिए दिल में बस गई। इस्माइल मेरठी ने क्या खूब कहा है-

''सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल, ज़िंदगानी फिर कहाँ,
ज़िंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ। ''

Movie Review :कपूर एन्ड संस 'Kapoor and Sons'

'Kapoor and Sons':
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एक अरसे बाद, जिस साधारण सी फ़िल्म ने मुझे असाधारण तरीके से झकझोरा, जिस फ़िल्म ने मुझे खूब रुलाया और खूब हँसाया भी, वह है 'कपूर एन्ड संस'।
एक भरी-पूरी फैमिली की रोजमर्रा की ज़िन्दगी की मस्तियों, नोकझोंक, गलतियों, शरारतों और यहाँ तक कि ज़्यादतियों का जीवंत दस्तावेज है ये मूवी। अगर इस बात को शिद्दत से महसूस करना है कि 'आज की ख़ुशी का लुत्फ़ पूरी तरह डूबकर आज ही उठाना क्यूँ ज़रूरी है, तो एक बार यह मूवी देख आएं।
मिसेज कपूर जब अपने पति से गिले-शिकवे बताते हुए कहती हैं, "क्या फिर से हम खुश नहीं हो सकते?", तो दरअसल वह इंसान की ज़िंदादिली की ओर संकेत कर रही थी, कि तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद खुशियां और जिजीविषा कभी नहीं मरती।
छोटी-छोटी फ़िज़ूल बातों को नज़रअंदाज़ करना एक सफल परिवार के लिए कितना ज़रूरी है, इस मूवी से सीख सकते हैं। मुझे अपने दोस्त उर्दू शायर अब्दुल्ला राज़ का एक शेर बड़ा मौजूं लगता है-
"ये सोच के मैं चुप रहा अपनों के दरमियाँ,
सब बोलने लगेंगे तो घर टूट जायेगा।"
मूवी को देखकर मुझे हिन्दी के जनकवि नागार्जुन की कविता में निहित गार्हस्थिक प्रेम की याद आ गयी-
"घोर निर्जन में विपत्ति ने दिया है डाल,
याद आता तुम्हारा, सिन्दूर तिलकित भाल।"
'राम की शक्ति पूजा' में निराला के राम जब संकट के क्षणों में जानकी की स्मृतियों में डूबकर ऊर्जा प्राप्त करते हैं, तो गृहस्थ जीवन का सहज प्रेम प्रतिध्वनित होता है-
"नयनों का नयनों से गोपन प्रिय सम्भाषण,
पलकों का नव पलकों पर प्रथमोत्थान पतन।"
'कपूर एन्ड संस' दरअसल एक आम शहरी परिवार की आकांक्षाओं और रवैये की दिलचस्प कहानी है, जिसमें हर छोटे-छोटे लम्हे को पूरी ईमानदारी और खुलेपन से अभिव्यक्त किया गया है।
मूवी ख़त्म होने के बाद जब अपने पांच साल के भतीजे आगम से मैंने मूवी का मोरल पूछा, तो उसके मासूम से उत्तर ने दिल जीत लिया और साथ ही मुझे निरुत्तर भी-
"परिवार में झगड़ा तो करना चाहिए, पर ज़्यादा नहीं।"

हम लोग ...

हम लोग 

बाहर उजले, भीतर काले, रंग बहुत से भरे हुए,
लाभ-हानि के फेर के हरदम, लेखे-जोखे हैं हम लोग। 

मत समझो हमको अपना, हैं अपनी ही धुन के जोगी,
करके सौदा खाल बेच दें, ज़िंदा धोखे हैं हम लोग। 

सबसे हिलना-मिलना-जुलना, देख हरेक को मुस्काना,
धंधा जिनका यही, दीवाने, उन्हीं 'भलों' के है हम लोग। 

शब्दकोश में अपने यारों, नहीं भरोसा अपनापन,
चादर से ईमान की झांकें, घने झरोखे हैं हम लोग। 

'निश्चल' हँसते हैं जबरन, बेवजह दिखाएँ बत्तीसी,
रख दो हमें नुमाइशघर में, बड़े अनोखे हैं हम लोग। 


वक़्त कहाँ .....

 वक़्त कहाँ 


 वक़्त कहाँ अब कुछ पल दादी के किस्सों का स्वाद चखूं,
वक़्त कहाँ बाबा के शिकवे, फटकारें और डांट सहूँ। 

कहाँ वक़्त है मम्मी-पापा के दुःख-दर्द चुराने का ,
और पड़ोसी के मुस्काते रिश्ते खूब निभाने का। 

रिश्तों की गरमाहट पर कब ठंडी-रूखी बर्फ जमी,
सोंधी-सोंधी मिट्टी में कब, फिर लौटेगी वही नमी। 

जब पतंग की डोर जुड़ेगी, भीतर के अहसासों से,
भीनी-भीनी खुशबू फिर महकेगी कब इन साँसों से। 

सूने से इस कमरे में कब तैरेंगी मीठी यादें,
बिछड़े साथी कब लौटेंगे, अपना अपनापन साधे।

कब आएगा समझ मुझे क्या जीवन का असली मतलब,
खुशियों को आकार मिलेगा, होंगे सपने अपने जब,

कभी मिले कुछ वक़्त अगर तो, ठहर सोचना तुम कुछ पल,
यूँ ही वक़्त कटेगा या कुछ बेहतर होगा अपना कल।