Monday 29 April 2019

फूलों का राजा...

अगर होता मैं फूलों का राजा!

कमल-गुलाब-गेंदा-कनेर
मानते सब कहना मेरा,
महकाता मैं हर बगिया को
होता खुशबू का डेरा।

फूलों के आसन पे बैठ मैं
अपना हुकुम चलाता,
फूल तोड़नेवाले को मैं
कड़ी  सजा दिलवाता।

दुनिया के कोने-कोने से
बदबू  दूर  भगाता,
चाँद-तारों से घुल-मिलकर मैं
बातें   खूब   बनाता।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

अपना रिक्शेवाला...

रुकता न थकता है कभी, न काम से जी वो चुराए,
मन में हरदम गूँज लगन की, गाने श्रम के गाए।

उठते हम जब सोते-जगते, आलस में ही रहते,
लेने हमें पहुँचता हरदम, मोनू-पिंकी कहते।

सवारियों को ढोकर आए, चाहे जितना पसीना,
चिल्ले का जाड़ा हो या हो, जालिम जेठ महीना।

दुःख-सुख जीवन दो पहिए, जाने मन से बात,
हँसता-खिलता चलता जाए, दिन हो या हो रात।

मन में न एक पल भी निराशा, रहता मगन हमेशा,
आशाओं के फूल खिला लो, देता यही संदेशा।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

धन्य-धन्य हे दो अक्तूबर!...

गांधी-शास्त्री के गुण गाते,
धन्य-धन्य हे दो अक्तूबर!

बापू की तुम याद दिलाते,
सत्य-अहिंसा तुम समझाते,
प्रेम का सागर देते हो भर!

लाल बहादुर सीधे-सादे,
ठाने पर मजबूत इरादे,
उनकी यादों की तुम गागर।

सबका दुःख अपना दुःख मानें,
एक-दूजे के भले की ठानें,
इसी प्रेरणा के तुम सागर!

देश की खातिर मिट जाएँ हम,
राष्ट्र-उदय को जुट जाएँ हम,
इसी भाव से भर दो हर घर!

इंतजार में रहते हम सब,
नए वर्ष आओगे तुम कब,
आते जब लेते बुराई हर!

हुए जरूरी देश की खातिर,
बापू के आदर्श आज फिर,
अपनाएँ सब शीश झुकाकर!

राष्ट्रपिता के शौर्य की जय हो,
शास्त्रीजी के धैर्य की जय हो,
इन नारों से गूँजे अंबर!

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

काका कलाम...

भारत के हर बच्चे के हैं,
दिल में बसते काका कलाम!

सकारात्मक ऊर्जा भरते
हो बाधाएँ कभी न डरते,
बड़े निराले बाल हैं उनके
बड़े निराले उनके काम।

सपने  पूरे  होंगे  तब
मिल-जुलकर हम रहेंगे जब,
जितने प्यारे पैगंबर हैं
उतने प्यारे हमको राम।

सोच बड़ी और स्वप्न नया
भारत को वह ‘विजन’ दिया,
जुड़ जाए विज्ञान धर्म से
हो जाए जग का कल्याण।

गाँव-गाँव पहुँचें सुविधाएँ
हर व्यक्ति शिक्षित हो जाए,
महाशक्ति भारत बन जाए
दुनिया में हो जाए नाम!

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

पढ़ें-पढ़ाएँ...

आओ मिल सब पढ़ें-पढ़ाएँ,
घर-घर ज्ञान का दीप जलाएँ।

जब से सीखा हमने पढ़ना,
चाहे मन पंछी-सा उड़ना,
बच्चे-बूढ़े सब चिट्ठी से,
मन की बात लिखें-पहुँचाएँ।

अंधकार-अज्ञान मिटेगा,
ज्ञान का सूरज नया खिलेगा,
इसी आस में अरमानों के,
बगिया में हैं फूल खिलाए।

जागे अपने हित की खातिर
जाएँगे दुखड़े सारे फिर,
नाम लिखें सबके सब अपना,
अँगूठा न कोई लगाए।

हो संकल्प हमारा अब से,
प्रेमभाव रखेंगे सबसे,
समझें जिम्मेदारी अपनी,
दूजों को भी संग सिखाएँ।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ!...

बेटी  से  रोशन  ये  आँगन
बेटी  से  ही  अपनी  पहचान,
हर लम्हे में खुशी घोलती
बेटी से ही अपनी शान।

शिक्षा - स्वास्थ्य - रोजगार
विज्ञान हो या संचार,
तेरी काबिलियत के आगे
नतमस्तक सारा संसार।

गाँव-शहर-कस्बों में बेटी
पढ़ती - बढ़ती  जाए,
नई चेतना से आओ अब
अपना देश जगाएँ।

धूमधाम   से   जन्में   बेटियाँ
पढ़कर  ऊँचा  कर  दें  नाम,
आओ  बेटियों  के  सपनों  में
भर  दें  मिलकर  नई  उड़ान।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(जिला मजिस्ट्रेट, केन्द्रीय जिला, दिल्ली द्वारा वर्ष  2016 में जनहित में जारी)  

राष्ट्र आज उनकी जय बोल!...

मिटे प्राण की बलि चढ़ाकर,
डटे राष्ट्र की पूजा गाकर,
जिनकी रक्त लालिमा से है,
पाई आजादी अनमोल!

खुली हवा में साँस मिली है,
खुशहाली की आस मिली है,
वंदन उनका करने को तू
हृदयों के दरवाजे खोल!

जाति-धर्म के तोड़ें बंधन,
भूल भेद महके ज्यों चंदन,
उनसे तुलना करके अपनी,
खुद से उनका जज्बा तोल!

शपथ आज उनकी हम खाएँ,
सपने उनके फिर चमकाएँ,
भेदभाव के कड़वे रस को,
प्रेम-चाशनी में तू घोल!

त्याग सदा वह अमर रहेगा,
शौर्य सदा वह अजर रहेगा,
वीर शहीदों की देनों का,
कौन चुका सकता है मोल?

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

सर्दी दीदी फिर न आना!...

कान पकड़ते हैं बच्चे सब,
सर्दी दीदी फिर ना आना।

छोड़ काम घर में सब दुबके
भूल खेल बच्चे हैं छुपके,
गली-मोहल्ले की सड़कों पर
सन्नाटा  छाया  वीराना।

पेंसिल छूटे अब हाथों से
कोहरा निकले अब साँसों से,
सच पूछो तो बच्चों का है
ना पढ़ने का नया बहाना।

सर्दी  तुम  कितनी  बेदर्दी
अब तो सचमुच हद ही कर दी,
अंग जमाए तन के सारे
बहुत हुआ छोड़ो भी सताना।

सूरज से दुश्मनी तुम्हारी
हाथापाई  -  मारामारी,
कुछ गुस्सा कम करो अगर तुम
हो जाए मौसम मस्ताना।

कोहरा-पाला-ओस गिराए
फिर भी चैन तुम्हें न आए,
हाथ जोड़ करते हैं विनती
बंद करो यह खेल दिखाना।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

उमड़-घुमड़कर बरखा आई...

काली घोर घटा है छाई,
उमड़-घुमड़कर बरखा आई।

भर गगरी जल बादल लाए
धीमे-धीमे से मुसकाए,
बहे मलय के छोर से प्यारी
मंद-मंद मीठी पुरवाई।

फूलों में है नई ताजगी
खुशबू में है नई सादगी,
पत्तों पर जब बूँद चमकती
सचमुच मोती पड़ें दिखाई।

बरखा रानी बड़ी सयानी
हँसमुख चंचल सी मस्तानी,
आती हो बस बादल के संग
हुई ज्यों उसके साथ सगाई।

राहुल-रोहन चले नहाने
नई फुहार का मजा उठाने,
जाओगे तो गिर जाओगे
यों चिल्लाकर बोली ताई।

चेहरों पर है चमक निराली
मुसकानें खेलें मतवाली,
मस्ती में झूमें सब ऐसे
ज्यों दीवाली-ईद मनाई।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

होली का त्यौहार...

हिलता-खिलता-मिलता-जुलता,
आया  होली  का  त्यौहार।

नाचे तन-मन, नाचे जीवन
नाचे आँगन, नाचे उपवन,
रंग-बिरंगी  ओढ़  चदरिया
धरती  लाई  नई  बहार।

टेसू  महके,  चहके  पंछी
धुन में अपनी हंस-हंसिनी,
चोंच मिलाकर करें ठिठोली
करें  सवेरे  का  सत्कार।

अंबर चला बाँध के सेहरा
लिये संग तारों का पहरा,
लगता  मानो  धरा-वधू  की
डोली  लेने  आए  कहार!

शीत बीत दिन हुए सुहाने
कुनमुनी धूप लगी मस्ताने,
हँसी-खुशी की, खेल-मेल की
राग-रंग की लगी है धार।

ऊँच-नीच क्या, बैर-खार क्या
छोट-बड़न क्या, जात-पाँत क्या,
भेद  मिटा  गोरे-काले  का
दसों दिशा में उमड़ा प्यार।

झगड़े-झंझट  और  झमेले
छोड़, भुला दो बैर कसैले,
फागुन की मदमस्त बयारें
आई  हैं  करने  मनुहार।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

ईद...

मुसलमान हो या हिंदू हों,
ईद सभी का है त्यौहार।

मिलकर सबको गले लगाएँ
भूल बैर बस झूमें-गाएँ,
आओ सुखविंदर-रोहित-क्रिस
आओ कविता और रुखसार।

गरम पकौड़े और पकवान
गजब जायके के सामान,
देख सिवइयाँ ललचाए हैं,
बच्चे आदत से लाचार।

‘ईदी’ दी अब्बा ने मुझको
कहा बाँट दो सबमें इसको,
झूलें झूला संग-साथ सब
नहीं खुशी का पारावार।

रोजों में जो गुण हैं सीखें
क्यों न उनको आगे खींचें,
बेमतलब की बात भूलकर
करें द्वेष का बंटाधार।

हिंदू-मुसलिम  भाई-भाई
ईद  यही  संदेशा  लाई,
जीने का मतलब सिखलाती
तोड़े मजहब की दीवार।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

गरमी की सौगात...

गरमी की भी भैया सचमुच अजब-गजब है बात,
हँसी-खुशी की, मौज-मजे की, लाई है सौगात।

मोटी-मोटी पोथी-पत्री से मुक्ति है,
मार-पिटाई फटकारों से अब छुट्टी है,
फिरें गली-कूचे में बच्चे बिल्कुल खाली हाथ।

टंटे-झगड़े-रगड़े-झंझट सब निपटे हैं,
छुटकू-बड़कू-लड़कू खुशियों से लिपटे हैं,
कुल्फी-चुस्की लगी चूसने मोहल्लों की जमात।

खाने-पीने के शौकीनों की है आई मौज,
आम ही नहीं संग है लाई फलों की लंबी फौज,
खीरा-खरबूजा-तरबूजा, लाई ककड़ी साथ।

चाहे जितना खेलें-कूदें मरजी अपनी,
हसरत पूरी कर लें सारी दिल की अपनी,
पना और शिकंजी पीकर, दें गरमी को मात।

साल-साल भर इंतजार इसका करते हैं,
हो न जाए खतम ये मौसम बस डरते हैं,
पापा चलो पहाड़ जल्द, आ जाएगी बरसात।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

रेल...

छुक-छुक करती आती रेल,
सबके मन को भाती रेल।

गार्ड ने झंडी हरी दिखाई,
रेल ने जब रफ्तार बनाई।

लगता जैसे भागते पेड़,
कहते मुझको न तू छेड़।

हवा से करती बातें रेल,
मन को खूब लगाती रेल।

सूरज कहता जाऊँ मैं,
पास न तेरे आऊँ मैं।

चाचू सूरज नाराज हैं,
थोड़े तुनकमिजाज हैं।

सरपट दौड़ी जाए रेल,
कैसे खेल दिखाए रेल।

नदी-पहाड़ हैं बड़े-बड़े,
कभी न हिलते अड़े-खड़े।

इतने यात्री ठसे पड़े,
ऊपर भी कुछ चढ़े-खड़े।

कितने यात्री ढोए रेल,
कुछ न फिर भी बोले रेल।

अगला स्टेशन ज्यों आया,
रेल ने पों-पों राग बजाया।

समझा मैं अब आया घर,
उतरें हम सब जल्दी कर।

सबको गले लगाती रेल,
थकती न अलसाती रेल।


© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

स्वागत है नए साल!...

नई उमंग लिये आए प्रिय,
स्वागत  है  नए  साल।

भूलें दुःख, बिसरें सारे गम,
हँसी-खुशी का साथ हो हरदम
चिंताएँ   दें   टाल!

मन की झोली में भर लें हम
ठंडी-मीठी हवा का मौसम,
हो  मतवाली  चाल!

गीत नए अंदाज नया हो
लहर नई अहसास नया हो,
सुरमय  हों  लय-ताल!

बैर-लड़ाई मिट जाएँ सब
झगड़े-रगड़े पिट जाएँ सब,
कटें  द्वेष  के  जाल!

लें संकल्प प्रेम का सबसे
कर्म मंत्र अपनाएँ अब से,
होंगे  तभी  निहाल!

नई चमक हो देश में अपने
सच हो जाएँ सारे सपने,
झुके  न  अपना  भाल!

खिल जाएँ मुरझाए चेहरे
ज्यों हों सुरभित पुष्प सुनहरे,
हो  बस  यही  कमाल!

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

माँ...

बूँद प्यार की बस उड़ेलती,
आँगन की फुलवारी माँ।

खेल-खेल में मुन्नू की है,
बनती रोज सवारी माँ।

मुश्किल चाहे झंझट कितने,
गाती राग मल्हारी माँ।

बिन नागा के सुबह-सवेरे,
देती  रोज  बुहारी  माँ।

थककर भी एक शिकन न लाए,
जादू भरी पिटारी माँ।

मुश्किल बिन माँ के एक पल भी,
सचमुच जग से न्यारी माँ।

जग सारा हो एक तरफ पर,
एक  अकेली  भारी  माँ।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(दैनिक ट्रिब्यून, 26 नवंबर 2006 में प्रकाशित)

गिफ्ट (लघुकथा)

श्याम नाम था उसका। युवावस्था की दहलीज पर खड़े सागर के घर से दो घरों के फासले पर स्थित भैंसों के तबेले पर दूध की डेरी चलाने वाले अपने पिता के साथ रहता था वह पाँच साल का हँसमुख बच्चा। गली में रहने वाले उसकी पीढ़ी के बच्चे समूह बनाकर खेलते। श्याम भी निहारता था तबेले से झांकता हुआ, उन 'बड़े' वर्ग से सम्बन्ध रखने वाले बच्चों को। श्याम और उसके हमउम्र बच्चों में दिन में एकाध बार निर्दोष मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान हो जाता था। बच्चे क्या जानें बाहरी दुनिया के फासले? उनका संसार जात-पांत, ऊँच-नीच, बड़े-छोटे की दीवारों से कोसों दूर जो था। धीरे-धीरे श्याम बच्चों से घुल-मिल सा गया था। सागर जब भी घर से निकलता, तो श्याम अपनी मासूम सी मुस्कान बिखेर ही दिया करता था।

ग्रेजुएशन के एग्जाम की तैयारी में जुटा सागर एक दिन अपने कमरे में पढ़ता-पढ़ता कुछ आवाज़ें सुनकर चौंका। बराबर वाले कमरे में रहने वाली अपनी चाची को रेलिंग पर खड़े हुए अपनी जेठानी-देवरानी से बतियाते सुना- 'तो क्या हुआ अगर वो नीची जात का है? एक मासूम सा मन तो उसका भी है। अगर संयम के बर्थ डे पर उसके दोस्तों में से मैंने श्याम को ही नहीं बुलाया, तो कितना दिल दुखेगा उसका। आखिर वो भी तो मेरे बच्चे जैसा ही एक बच्चा है।' सुनकर सागर अपनी चाची की संवेदनशीलता पर गौरवान्वित महसूस कर रहा था। आखिर संवेदनशील सागर को मासूम श्याम से लगाव और अपनापन सा जो था। उसने भी चाची के इस नेक प्रस्ताव का नैतिक समर्थन किया।

क्या चमक थी श्याम की आँखों में, जब शायद ज़िन्दगी में पहली बार उसने कोई बर्थ डे पार्टी अटेंड की थी। खुशनुमा माहौल में संपन्न इस पार्टी के बाद चाची के कमरे में संयम के दोस्तों से मिले उपहारों को खोलने की रस्म अदायगी शुरू हुई। सागर अपने बराबर वाले स्टडी रूम में पढ़ाई में व्यस्त इस सबसे बेखबर ही था। तभी चाची के कमरे में गूंजी एक फटकार ने सागर का ध्यान खींचा। 'अरे संयम! दोबारा गिन। बच्चे तो मैंने बारह बुलाये थे पर ये गिफ्ट ग्यारह कैसे?' चाची ने लगभग चिल्लाते हुए अपने बेटे संयम को कहा।


'मम्मी, मैं बिलकुल अच्छी तरह गिन चुका हूँ, कोई दोस्त ज़रूर बिना गिफ्ट लिए आया होगा।' संयम बोला।
'जल्दी इनकी चिटों पर नाम पढ़। मुझे तो लगता है कि वो श्याम का बच्चा ही मुफ्त की दावत उड़ाकर गया है।' चाची चिल्लाईं।
'शायद ऐसा ही हो मम्मी, उसका नाम किसी चिट पर है भी नहीं।' संयम डरते हुए बोला।
'नीची जात वाले तो नीची जात के ही होते हैं। आज से संयम का उस कलुए के साथ खेलना बंद।'

चाची के इन चुभते शब्दों से हैरान और चेतनाशून्य सा होकर सागर किताब बंद कर कमरे से भागा। कहीं बराबर बरसते शब्दबाण उसके सब्र का बांध न तोड़ दें।

Saturday 27 April 2019

मेरा नया दोस्त फेसबुक!...

किए नए फोटो ‘अपलोड’,
कितने ‘लाइक’ मिलते रोज,
होती है मन में धुक-धुक,
मेरा नया दोस्त फेसबुक।

शेयर करेंगे मन की बात,
मिले ‘कमेंट’ भी हाथों हाथ
प्रोफाइल का नया है लुक।

स्कूल की मिलती ‘अपडेट’
क्या कर रहे नया क्लासमेट
पीछे रहने की क्या तुक!

चेतन भगत या ओबामा,
सचिन हो या फिर हो साइना,
सबको बना ‘फ्रेंड’ न रुक।

नए-पुराने दोस्त मिले,
बचपन के सब रंग खिले,
नए ‘फेस’ हैं, नई है ‘बुक’।

चेहरों की है एक किताब,
सबका पूरा रखे हिसाब,
रिश्ता है थोड़ा नाजुक।
मेरा नया दोस्त फेसबुक!

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

मुर्गे का घमंड...

मुर्गा बोला यूँ मुर्गी से
हूँ मैं सबसे हटकर,
जंगल सारा जाग उठे जब
देता बाँग मैं डटकर।

कलगी मेरी जग से सुंदर
चाल मेरी मस्तानी,
उड़ न सकूँ भले जीवन भर
हार कभी न मानी।

मुर्गी बोली फिर मुर्गे से
बस  छोड़ो  इतराना,
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बन
अपनी - अपनी  गाना।

करके देखो एक दिन ऐसा
मत देना तुम बाँग,
मानूँ तुम्हें मैं तीसमार खाँ
रुका रहे जो चाँद।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(दैनिक जनवाणी, 8 अप्रैल 2012  में प्रकाशित)

मोबाइल का कमाल...

बोले बच्चे चीज है ये
मोबाइल बड़ी कमाल।

हों पहाड़ पर या जंगल में,
धरती पर हों या अंबर में,
चुटकी भर में बात कराए,
कैसा  किसका  हाल।

मम्मी के मन चिंता छाई,
बबली अब तक क्यों न आई,
फोन मिलाया एक मिनट में,
बिन  पिचकाए  गाल।

चिट्ठी के दिन जब से बीते,
दादाजी  थे  रीते-रीते,
अब मोबाइल पर मैसेज से,
करते  रोज  धमाल।

चलते-फिरते बात करें हम,
लेटे-बैठे याद करें हम,
मम्मी बोली, देखो जी अब
इन बच्चों की चाल।

रेल में हों या कोई रैला,
तार-वार का नहीं झमेला,
नए दौर की पीढ़ी से है,
बैठी  इसकी  ताल।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(अमर उजाला, 13 अक्तूबर 2007 में प्रकाशित)

Friday 26 April 2019

जंगल में क्रिकेट...

जंगल में भी फैल रहा था सचमुच क्रिकेट बुखार,
लोमड़-हाथी-भालू-बिल्ली, सब पर चढ़ा खुमार।

जंबो हाथी अंपायर थे, चेहरे थे सब खिलते,
छक्का लगने पर जब जंबो, खड़े-खड़े थे हिलते।

लोमड़ ने तरकीब निकाली, खोजी अद्भुत चाल,
बना दिया कीपर भालू को, कैसे निकले बॉल।

देख मैच राजा के भीतर जागा जोश अनोखा,
छीन बैट अड़ गए क्रीज पर, दिया सभी को धोखा।

किसकी हिम्मत इतनी, जो राजा को आउट कराए,
उड़ा के गिल्ली शेरसिंह को पवेलियन पहुँचाए।

शेरसिंह ने मजे-मजे में छक्के खूब जमाए,
डबल सेंचुरी जमा के भैया, सबके होश उड़ाए।

बोला बंदर बॉल मुझे दो, इसकी ऐसी-तैसी,
राजा होगा राजनीति में, यहाँ हेकड़ी कैसी?

बंदर ने जो स्विंग कराकर, बॉल एक बार घुमाई,
विकेट के पीछे तीन गिल्लियाँ, अलग ही नजर आईं।

बल्लू बंदर की हिम्मत की देनी होगी दाद,
शेरसिंह को सबक सिखाके दिलाई नानी याद।


© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नवभारत टाइम्स,11 अप्रैल 2010)

रक्षाबंधन का त्यौहार...

गीत खुशी के गाता आया,
रक्षाबंधन  का  त्यौहार

मौसम भी मदमस्त हुआ है,
रोना-धोना पस्त हुआ है,
संग-साथ लाया है अपने
सावन की मधुरिमा बहार!

भाई-बहन का प्यार अनूठा,
अमर सदा जो कभी न टूटा,
उसी नेह का उसी प्रेम का,
झूम-झूम  करता  संचार।

सपने पूरे साल सँजोए,
पर भैया थे खोए-खोए,
देखा तो राखी वाले दिन,
झोली भर लाए उपहार।

हो खटास कितनी भी मन में
सब मिट जाए बस कुछ क्षण में,
तोड़ के सारी दुःख की गाँठें,
जोड़े मन से मन के तार।

राखी न धागा न कतरन,
सच्चे प्यार का सच्चा बंधन,
नींव पे जिसकी टिका हुआ है,
रिश्तों का स्वर्णिम संसार।

हिंदू-मुसलिम-सिक्ख-ईसाई
सब बहनों को प्यारे भाई,
मिलकर आएँ, सभी मनाएँ,
होगा  तभी  पर्व  साकार।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।

तितली रानी...

गुनगुन करती तितली आई,
बच्चों के मन को है भाई।

टिंकू - टीना - टुनटुन - टिल्लू,
मिलकर सबने दौड़ लगाई।

लाख कोशिशें करने पर भी,
तितली रानी पकड़ न आई।

मदमाते - मुसकाते - मधुरिम,
फूलों पर लेती अँगड़ाई।

खुशबू की इतनी दीवानी,
मँडराती ही पड़े दिखाई।

मैडम! मुझको तितली रानी,
लगती  शरमाई - सकुचाई।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(दैनिक ट्रिब्यून, 5 नवंबर 2006)

कैसे वे रुक पाएँ?...

समय-समय पर साहसियों ने
तोड़े   हैं   दस्तूर,
जाने कैसे भरे हुए थे
दिमागों  में  फितूर।

पुर्तगाल का सनकी नाविक
छोड़   सभी   आराम,
करके  पार  समंदर  पहले
पहुँचा हिंदुस्तान।

कोलंबस का भी था प्यारे
कैसा  अजब  सलीका,
चला ढूँढ़ने भारत था पर
जा पहुँचा अमरीका।

कैप्टन कुक की बात निराली
थकने  का  क्या  काम,
अटक-भटक पहुँचे ऑस्ट्रेलिया
कंगारू   के   धाम।

खुराफात भी क्या थी मन में
हिम्मत  का  क्या  दम,
नई-नई  राहों  पर  बढ़ना
हो  सुख  या  हो  गम।

तूफान-बवंडर-भँवर-आँधियाँ
हों   कितनी   बाधाएँ,
सचमुच हों धुन के जो पक्के
कैसे  वे  रुक  पाएँ।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(बाल भारती, फरवरी 2007)

शान देश की मेट्रो रेल...

इठलाती-बलखाती  दौड़े
शान देश की मेट्रो रेल।

एक बार बैठे जो उसमें,
बैठा ना जाए फिर बस में,
ललचाए मन हर यात्री का,
हो  जैसे  जादुई  खेल।

झूम-झूम बस दौड़ी जाए,
पलक झपकते ही पहुँचाए,
क्या शताब्दी और क्या राजधानी
इसके आगे हैं सब फेल।

ट्रैफिक का झंझट अब निपटा,
समय बचा और काम भी सिमटा,
सुविधा और तकनीकी का है,
नया-निराला  अद्भुत  मेल।

देख-देख  हैं  सब  हैरान,
रेल में भी इतना आराम
कभी है ऊपर, कभी है नीचे
जैसे दिया किसी ने ठेल।

शोर मचाए बिना ये आए
धुआँ उड़ाए बिना ये जाए,
ध्वनि-वायु के प्रदूषणों को,
अब क्यों मोनू-पिंकी झेल?

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(पंजाब केसरी में 11 अप्रैल, 2007 को प्रकाशित)

ई-मेल...

धूम मचाती रंग जमाती,
मन को भाती है ई-मेल।

चुटकी भर में दौड़ी जाए
एक पल में जवाब पहुँचाए,
कुरियर या स्पीड पोस्ट हो
इसके आगे हैं सब फेल।

चिट्ठी लंबी-चौड़ी कितनी
फाइलें साथ लगी हों जितनी,
बड़े-बड़े  संदेशे  ढोए
जैसे हो बच्चों का खेल।

बस साइबर कैफे पर जाना
या ब्रॉडबैंड कनेक्शन लाना,
डाक-कुरियर के खर्चों को
अब क्यों मोनू-पिंकी झेल।

जगह-जगह के बच्चे आएँ
भाँति-भाँति के मित्र बनाएँ,
अपनी खुशियाँ सबसे बाँटें
हो जाए दुनिया का मेल।


© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नंदन, अप्रैल 2013 में प्रकाशित)

ऊँट बड़े तुम ऊटपटाँग!...

अजब-गजब आकार तुम्हारा
बालू ही संसार तुम्हारा,
कमर पे कूबड़ रखा हुआ है
दिया हो जैसे किसी ने टाँग।

भोली सूरत गैया जैसी
लंबी गरदन है जिराफ-सी,
कूँ-कूँ करते हो तुम बिल्कुल
जैसे  मुर्गा  देता  बाँग।

लंबे-लंबे  सफर  नापते
पानी बिन न खड़े टापते,
रेत पे सरपट दौड़े जाते
भर के नन्ही सी छलाँग।

रेगिस्तानी तुम जहाज हो
मरुभूमि के महाराज हो,
कौन है सानी भला तुम्हारा
भारी बहुत तुम्हारी माँग।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(दैनिक ट्रिब्यून, 8 अप्रैल 2007 में प्रकाशित)

चंदा मामा...

चंदा मामा बड़े सयाने
मंद-मंद  मुसकाते  हैं,
जब भी देखो खड़े-खड़े
सुंदरता पर इठलाते हैं।

ये क्या चक्कर कभी तो तुम
होते हो पूरे बड़े-बड़े,
और कभी तुम छोड़ सितारे
हो जाते हो भाग खड़े।

घटते-बढ़ते रहते हो तुम
यह कैसा गड़बड़झाला,
बनते पतलू राम कभी तो
कभी बने मोटे लाला।

मामा हैं नटखट शरारती
इनके  खेल  निराले,
आज समझ में आया मुझको
मामा हैं  मतवाले।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(बालहंस,  अगस्त -द्वितीय, 2006  में प्रकाशित)

किताबें...

अकेलेपन की सच्ची साथी, होती भाई किताबें,
ज्ञान का सागर घुमड़-घुमड़कर ढोती भाई किताबें।

सारी मुश्किल-सवाल सारे, पलभर में निपटाएँ,
हरपल-हरदम साथ निभाकर, सचमुच मन को भाएँ।

कहती मुझमें ही खो जाओ, करना नहीं बहाना,
अजब-अनोखी दुनिया का मैं, दूँगी नया खजाना।

जो कुछ भी तुम जान न पाते, सबका भेद बताऊँ,
बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सबका ज्ञान बढ़ाऊँ।

पर्वत-नदी-ध्रुव या मरुस्थल, छुपता न कुछ मुझसे,
ताजमहल-मीनार पीसा की, बचता न कुछ मुझसे।

सीखो मुझसे हिलना-मिलना, मुसकाना खिल जाना,
कोई कहे, किताबी कीड़ा, पर तुम न घबराना।

उनके लिए अंगूर हैं खट्टे, इसीलिए हैं कहते,
पढ़नेवाले बच्चे जग में सबसे आगे रहते।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(बाल भारती, सितम्बर, 2006  में प्रकाशित)

अजब-अनोखी दुनिया...

अजब-अनोखी प्यारी दुनिया,
लगती सबसे न्यारी दुनिया,
इस दुनिया के खेल नवेले,
जीव-जंतु प्यारे अलबेले।

अजब-गजब हैं रंग धरा के,
कैसे खेल खिलाती है,
टीचर कहती गोल है दुनिया,
मुझको चपटी लगती है।

इस दुनिया में कैसे-कैसे,
पशु-पक्षी हैं भरे पड़े,
कोई छोटा कोई मोटा,
जाने  कैसे  रंग  भरे।

लंबी गर्दन है जिराफ की,
ऐसी जैसे हो खंभा,
जंबो हाथी इतना भारी,
लेना मुश्किल है पंगा।


© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नवभारत टाइम्स ,14 दिसंबर , 2008 में प्रकाशित)

शादी बंदर मामा की...

चंपक वन से रिश्ता आया
प्यारे बंदर मामा का,
न्योता देते गला है सूखा
न्यारे बंदर मामा का।

अब तक तो बंदर मामाजी
कूदम-कूद  मचाते  थे,
धमा-चौकड़ी मचा-मचाकर
सबको खूब हँसाते थे।

 लेकिन अब बंदर मामाजी
मामी के पीछे भागेंगे,
हम लोगों की न सुनकर
उनकी ही बातें मानेंगे।

 नटखट बंदर मामा की
न रहा खुशी का कोई पार,
बैठे थे यूं कुंवारे अब तक
घोड़ी पर हैं आज सवार।

 घोड़ी ने जो ऐंठ लगाई
उछले बंदर मामाजी,
सीधे कूद लगा चंपक वन
पहुँचे  बंदर  मामाजी।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नवभारत टाइम्स, 11 जुलाई, 2010 में प्रकाशित)

Wednesday 24 April 2019

पहली बरसात...

चुन्नू-मुन्नू देखो आई
मौसम की पहली बरसात,
गरमी से राहत देने को
लाई ठंडक का एहसास।


छतरी-रेनकोट लेकर ये
प्यारा सा मौसम आया,
गरम पकौड़ी खाने को है
मन सबका अब ललचाया।


टप-टप टपकें बूँदें जैसे
गिरते हों सच्चे मोती,
मानसून की ये बहार है
लाई खुशियों की थाती।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(अमर उजाला, मेरठ, 30 जुलाई, 2002 में प्रकाशित)

Sunday 21 April 2019

श्री महावीराष्टक स्तोत्र (हिंदी पद्यानुवाद)



जिनके परम कैवल्य में चेतन अचेतन द्रव्य सब,
उत्पाद व्यय अरु ध्रौव्य युत नित झलकते हैं मुकुर सम,
जो जगत दृष्टा दिवाकर सम मुक्ति मार्ग प्रकट करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

जिनके कमल सम हैं नयन दो, लालिमा से रहित हैं,
करते प्रकट अन्तर बहिर, क्रोधादि से नहीं सहित हैं,
हैं मूर्ति जिनकी शान्तिमय, अति विमल जो मुद्रा धरें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

नमित इन्द्रों के मुकुट मणियों के प्रभा समूह से,
शोभायमान चरणयुगल लगते हैं जिनके कमल से,
संसार ज्वाला शान्त करने हेतु जल सम जो बहें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

मुदित मन से चला जिनकी अर्चना के भाव से,
तत्क्षण हुआ सम्पन्न मेंढक स्वर्ग सुख भण्डार से,
आश्चर्य क्यों? यदि भक्तजन नित मोक्षलक्ष्मी वरण करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

तप्त कंचन प्रभा सम, तन रहित ज्ञान शरीर युत,
हैं विविधरूपी एक भी हैं, अजन्मे सिद्धार्थ सुत,
हैं बाह्य अंतर लक्ष्मी युत तदपि विरागी जो बने,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

जिनकी वचनगंगा विविध नय युत लहर से निर्मला,
ज्ञानजल से नित्य नहलाती जनों को सर्वदा,
जो हंस सम विद्वत जनों से निरन्तर परिचय करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

जिसने हराया कामयोद्धा तीनलोकजयी महा,
अल्पायु में भी आत्मबल से वेग को निर्बल किया,
जो निराकुलता शान्तिमय आनन्द राज्य प्रकट करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

जो वैद्य हैं नित मोहरोगी जनों के उपचार को,
मंगलमयी नि:स्वार्थ बन्धु विदित महिमा लोक को,
उत्तमगुणी जो शरण आगत साधुओं के भय हरें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।

भागेन्दुकृत जो महावीराष्टक स्तोत्र पढ़ें सुनें,
भक्तिमय वे भक्तिपूर्वक परम गति निश्चय लहें।
       
                                    -- निशान्त जैन 



गौरैया का घोंसला... (पर्यावरण दोहे/ Two-liners)


गौरैया का घोंसला, बरगद की वह छाँव,
कोयल की वह कूक और कागज़ की वह नाव। 

ज्ञान और विज्ञान का, क्या है यही प्रभाव,
सूखे बाग़-तालाब सब, सूखा हो गया गाँव। 

जब-तब काँपे ये धरा, भूस्खलन-विस्फोट,
बाढ़ें-आंधी-आपदा, भूकम्पों की चोट। 

लोहे और कंक्रीट के, मनमाने निर्माण,
हड़पी भूमि किसान की या छीने उसके प्राण। 

चकित परिन्दों का उठा, दुनिया से विश्वास,
'सभ्य दरिन्दे' ले गए, चिड़ियों के आवास। 

नकली खुशबू साँस में, मुँह से आती बास,
जहरीले परिवेश में, कृत्रिम हैं अहसास। 

क्या मिट्टी-पानी-हवा, सब के सब बेहाल,
महाबली मानव बना, खुद कुदरत का काल। 

प्रकृति के इस तंत्र से, यह कैसा खिलवाड़,


क्या चेतेगा तू  तभी, जब झेलेगा मार। 

-निशान्त जैन 

पर्यावरण चेतना से अब जागे हिंदुस्तान


जल-जंगल-जमीन की रक्षा, हो अपना अभियान,
पर्यावरण चेतना से अब जागे हिंदुस्तान।

वायु विषैली, जल जहरीला, वातावरण में बेचैनी,
ध्वनि प्रदूषण ने है सारी, सुख-शान्ति अपनी छीनी,
मिट्टी-पानी-हवा यही तो, कुदरत के वरदान।

 प्रकृति माँ देती जितना मांगो, उससे भी ज़्यादा,
संसाधन का अनुचित  दोहन, तेरा गलत इरादा,
बढ़ता लालच कर देगा, इस धरती को सुनसान। 

गलते पर्वत, धँसती धरती और धधकती ज्वाला,
हुआ क्षरण ओज़ोन परत का, कैसा गड़बड़झाला,
असंतुलित विकास देख है, कुदरत भी हैरान। 

फूल-पत्तियाँ, पशु-पक्षी और हरे-भरे ये पेड़,
सच्चे मित्र यही अपने हैं, इनको मत तू छेड़,
सदियों से है जुड़ी हुई, इनसे तेरी पहचान। 

नदी-सरोवर-कुएँ-बावड़ी-नहरें-सागर-झीलें,
बाग-बगीचों के संग आओ, मिलकर जीवन जी लें,
लहलहाएँ -मुस्काएँ फिर, मैदान-खेत-खलिहान।