Saturday 24 December 2016

'दंगल'- म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के?

'दंगल' : म्हारी छोरियाँ छोरों से कम हैं के? 

खेल का मतलब सिर्फ़ क्रिकेट से लेने वाले करोड़ों भारतीयों को इतनी देर तक कुश्ती के मैच दिखाना और उसके नियम-क़ायदे तक सिखा देना आमिर खान के बस की ही बात है। हरियाणा जैसे सूबे में अपनी बेटियों को पहलवान बनाने का सपना देखना और उसे दिन-रात जीना कोई महावीर सिंह फोगट से ही सीखे। 
मेरी समझ में इस बेहतरीन मूवी के क्या-क्या निहितार्थ हैं और क्या-क्या सीखना हमारे लिए भी काम का हो सकता है, आइए जानें :-
  1. किसी भी बड़ी चाहत को सच करने के लिए थोड़ा जुनून तो चाहिए ही। कुछ पाने के लिए काफ़ी कुछ खोना भी पड़ता है। याद है ना, जयशंकर प्रसाद ने भी लिखा है-"महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीप में पलता है।"
  2. जीवन में थोड़ी सी सफलता आगे बड़ी सफलताओं का रास्ता खोल सकती है, बशर्ते आप बौखलाए बग़ैर सहज रहें। गीता-बबीता फोगट के पिता एक संवाद में कहते भी है, "बस एक बात कभी मत भूलना कि तू यहाँ तक पहुँची कैसे?"
  3. लोगों की फ़िज़ूल की बातों के चक्कर में पड़ने वाले लम्बी रेस के घोड़े नहीं बन पाते। इधर-उधर की नकारात्मक बातें बनाने वाले कम नहीं, पर उन्हीं के बीच आपकी मदद करने को तत्पर लोग भी मिल ही जाते हैं।
  4. गीता को ट्रेनिंग देने वाले तथाकथित इंटरनेशनल लेवल के कोच का कैरेक्टर भी बहुत कुछ सिखाता है। झूठा श्रेय लेने, आपको निरंतर हतोत्साहित करने और झूठी ईगो में जीने वाला व्यक्ति आपको तंग करने की ख़ातिर किसी भी हद तक जा सकता है। ऐसे में रहीम के एक दोहे में इस समस्या का समाधान भी छिपा है-
         "रहिमान ओछे नरन सों, बैर भली न प्रीत,
          काटे-चाटे स्वान के, दोऊं भाँति विपरीत।"
         कुल मिलाकर ऐसे लोगों से एक सुरक्षित दूरी बनाए रखना ही बेहतर है।
     5- आख़िरी और बेहद ज़रूरी बात- 'कभी भी अपने व्यक्तित्व की मौलिकता न खोयें'। सहवाग हैं तो सहवाग ही रहें, द्रविड़ बनने के चक्कर में अपने भीतर के 'सहवाग' को अनदेखा न करें। कहने का मतलब है कि नया ज़रूर सीखें, पर अपने 'स्वत्च' या मूल स्वरूप को खोने की क़ीमत पर नहीं। मैंने कहीं पढ़ा था:
"ना किसी के 'अभाव' में जियो, ना किसी के 'प्रभाव' में जियो,
ये ज़िंदगी है आपकी, इसे अपने 'स्वभाव' में जियो।"
(यह कोई टिपिकल फ़िल्म समीक्षा नहीं है। वैसे अगर इसे मूवी देखने के बाद पढ़ने वाला ज़्यादा एप्रिशियेट कर पाएँगे।)







2 comments:

  1. bahut hi khubasurat lekhani v lekhan vyaktitwa,nishant jain sir mai janta hu ki is duniya ke log kaise hai aur mai bh.....
    fir bhi...innshaniyat to ishaniyat hoti hai,,,,,
    dhanyavaad nirantar lekhan v prerana ke liye
    shailendra,BHU,also IAS ASPIRANTS

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