Sunday, 10 July 2016

देखा मैंने प्यारा सर्कस....

देखा मैंने प्यारा सर्कस
देखा मैंने जंबो हाथी
कूद रहे थे बंदर,
दिखा रहे थे खेल शेर फिर,
झूम रहे थे जोकर
जोकर ने फिर नाच-नाचकर
ऐसी कूद लगाई,
हो गई सिट्टी-पिट्टी गुम यों,
जान गले में आई।
फिर जोकर ने ठुमक-ठुमककर
ऐसा खेल दिखाया,
मटक-मटक के लोट-पोटकर
हमको खूब हंसाया
बंदर थे मनमौजी इतने,
मचा रहे थे शोर,
कभी खड़े हो, कभी बैठकर,
घूमें चारों ओर।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नंदन, अक्टूबर 2015 में प्रकाशित)




 

2 comments: