कल शाम Dear Zindagi मूवी देखी। तभी से मन में कुछ हलचल सी थी, सोचा कि लिख डालूँ और साझा करूँ।
छोटी सी, प्यारी सी इस ज़िंदगी में रोज़मर्रा की भागदौड़ के बीच हल्की-फुल्की उठापटक, उलझनें और सुलझनें, छोटे-बड़े उतार-चढ़ाव होते रहना स्वाभाविक भी है और लाज़मी भी।
पर क्या हमने ख़ुद से कभी ये छोटा सा सवाल पूछा है कि हम इन मुश्किलों या छुट-पुट दिक्कतों का सामना करने के लिए तैयार हैं? क्या हम अपनी ज़िंदगी से और ख़ुद से सचमुच प्यार करते हैं? कहीं हम आगे बढ़ने की होड़ में रिश्तों और ख़ुद की ज़िंदगी से खिलवाड़ तो नहीं कर रहे?
मन के नाज़ुक से कोने में बसे इसी तरह के कुछ प्रासंगिक और ज़रूरी सवालों के जवाब ढूँढती यह मूवी अनायास ही किस तरह अपने ज़िंदगी को जी भर कर जीने और प्यार करने के नुस्ख़े सिखाती है, आइए जानें:-
- कभी-कभी हम मुश्किल रास्ता इसलिए चुनते हैं क्योंकि हमें लगता है कि महत्वपूर्ण चीज़ पाने के लिए हमें मुश्किल रास्ता चुनना चाहिए। हम मुश्किल रास्ता ही चुनना चाहते हैं। ख़ुद को सज़ा देना चाहते हैं। पर सवाल यह है कि अगर आसान रास्ता उपलब्ध है तो उसे अपनाने में भला क्यों हिचकिचाना? आसान रास्ता भी तो एक रास्ता है।
- जब कुर्सी ख़रीदने के लिए इतने विकल्प देखते हैं, तो ज़िंदगी के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में उपलब्ध विकल्पों पर थोड़ा सोचना तो बनता है।
-क्या रोज़ 10 मिनट मम्मी-पापा से बात करना सचमुच इतना मुश्किल काम है?
-जीनियस वो नहीं होता जिसके पास हर सवाल का जवाब हो, बल्कि जिसके पास हर जवाब तक पहुँचने का धैर्य हो।
-हर टूटी हुई चीज़ जोड़ी जा सकती है।
-पागल वो है जो रोज़-रोज़ एक ही काम करता है और चाहता है कि नतीजा अलग हो।
- अपनी ज़िंदगी के स्कूल में हम सब ख़ुद अपने शिक्षक हैं।
- अपनी ज़िंदगी की पहेली को सुलझा आप ख़ुद ही सकते हैं पर दूसरे इसमें आपकी मदद ज़रूर कर सकते हैं।
- जो भी कहना चाहते हो, उसे कह डालो, बजाय दिल पर बोझ रखकर घूमने के।
-ज़िंदगी में जब कोई आदत या पैटर्न बनता दिखाई दे, तो उसके बारे में सोचना चाहिए। अक़्लमंदी ये जानने में है कि कहाँ उस आदत को रोकना है।
- कोई हमें अलविदा न बोल सके, उससे पहले ही हम इस डर से उसे अलविदा बोल देते हैं कि कहीं पहले वह अलविदा न बोल दे।
क्यों न उस डर को अलविदा बोल दें। आओ, आज़ाद हो जाएँ अपने मन में बसे डर से।
किसी शायर ने लिखा भी है-
'मुहब्बत के शहर का आबो-दाना छोड़ दोगे क्या,
जुदा होने के डर से दिल लगाना छोड़ दोगे क्या,
ज़रा सा वक़्त क्या गुज़रा, कि चेहरों पर उदासी है,
ग़मों के ख़ौफ़ से तुम मुस्कुराना छोड़ दोगे क्या।'
बहुत खुब निशान्त जैन जी
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteअतिउत्तम
ReplyDeleteसर में आपके लेखन कला से बहुत प्रभावित हूँ । कोशिश करता हूँ की मैं भी आपके जैसे लिख सकूँ इसीलिए रोजाना लेखन अभ्यास करता हूँ। धन्यवाद सर जी साझा करने के लिए ।
ReplyDeleteसर मुझे आपकी शब्दावली से बहुत लगाव है।
ReplyDeleteआप मेरे आदर्श हो!!
जय हिंद
जय भारत
भागदौड़ की जिंदगी में रिश्ते कमज़ोर तो हुए हैं। हम संतुलन बना सकते हैं, इसके अभाव में सफलता असफलता के कोई मायने नही होंगे।
ReplyDeleteआप के शब्द दिल को छू जाते है सर,सच कहूं तो आप हमारे सच्चे मार्गदर्शक है।
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