अपनी लकीर बड़ी करें……….
--- निशान्त जैन (सिविल सेवा परीक्षा 2014 में हिंदी माध्यम से प्रथम स्थान)
प्रिय दोस्तों, आपने एक कहावत सुनी होगी कि अगर जिंदगी में आगे अपनी बढ़ना है, तो अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करें, ना कि दूसरे की लकीर को मिटाकर छोटा करने की। किसी बुद्धिमान व्यक्ति या समुदाय के गहरे अनुभव से उपजी यह कहावत हम हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों पर बहुत हद तक सटीक बैठती है। आखिर ऐसी कौन सी चिंतन प्रक्रिया है, जिससे हम निराशा, घबराहट, आशंका और हताशा से उबरकर अपनी ताकत को पहचानें और सही दिशा में जुट जाएं। अपनी सोच को किस दिशा में मोड़े कि हम दूसरों के बारे सोचने से बचते हुए अपने प्रगतिपथ पर कुछ इस तरह आगे बढ़े कि हमारी खुद की लकीर बड़ी और प्रभावी हो जाए और हमारी उड़ान को खुले पंख मिल जाएं।
2014 की सिविल सेवा परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त होने के बाद ऐसे कई अवसर आए, जब मेरा संवाद हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों से हुआ। मुझे एक बात हर बार महसूस हुई कि हम हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों में ना तो प्रतिभा की कोई कमी है और ना ही जुनून की। लेकिन एक बात जो मुझे बेचैन करती है, वह हम हिंदी या भारतीय भाषाओं के माध्यम के अभ्यर्थियों में पसरी एक अजीब सी घबराहट और आशंका। ‘कहीं हम अच्छे अंक ला पाएंगे या नहीं’? ‘प्रारंभिक परीक्षा के बाद अब मुख्य परीक्षा में अब हम कितने अंक ला पाएंगे?’ ‘कहीं हम अन्य माध्यम के परीक्षार्थियों से पीछे तो नहीं हैं?’ आदि.. इस तरह की तमाम आशंकाएं हमारे मन को मथती रहती हैं।
आइए इन सब स्वाभाविक समस्याओं से उबरने के लिए अपनी लकीर बड़ी करके आगे बढ़ने के कुछ ठोस उपायों पर एक-एक करके चर्चा करें। सबसे पहली बात तो यह है कि अंग्रेजी से डरने, भागने या मुंह छिपाने की आदत से जितनी जल्दी हो सके, छुटकारा पाने की कोशिश करें। अंग्रेजी कोई हौवा नहीं है, बल्कि यह एक सरल भाषा है, जिसमें कुल 26 अक्षर हैं और जिसे आप बचपन से लेकर अब तक पढ़ते रहे हैं। अंग्रेजी भाषा से डरने का दुष्परिणाम मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी भाषा के अनिवार्य प्रश्नपत्र में असफल होना भी हो सकता है, जो स्वयं में बेहद दुखद स्थिति है। अंग्रेजी के क्वालिफाइंग पेपर में अनुतीर्ण होने पर मुख्य परीक्षा की बाकी पुस्तिकाएं भी नहीं जांची जातीं। यानी सफल होना तो दूर आप अपने आत्मनिरीक्षण और आत्म मूल्याकंन के अवसर से भी वंचित हो जाते हैं।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए अंग्रेजी का विशेषज्ञ बनने या उसमें पूर्णत: निपुण होने की दरकार कतई नहीं है। महज इतनी अपेक्षा है कि आप सामान्य अंग्रेजी समझ सकें और बोधगम्य तरीके से पढ़ व लिख सकें। कम से कम ऐसी अंग्रेजी, जिसमें स्पेलिंग और ग्रामर की गलतियां कम से कम हों। आपको सामान्य और बोधगम्य शब्दों का प्रयोग करते हुए सरल अंग्रेजी के प्रयोग की आदत विकसित करनी होगी। इतना भर कर लेंगे, तो ना घबराहट होगी और ना हीन भावना विकसित होगी। 'राम की शक्ति पूजा' में निराला की ये पंक्तियाँ कभी न भूलें-
''आराधन का दृढ आराधन से दो उत्तर,
तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर".
एक और चिंतनीय पहलू यह भी है कि हम अवांछनीय तरीके से अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थियों से एक अनजाना और गैर जरूरी दबाव महसूस करते हैं। हम अक्सर यह महसूस करते हैं कि हम उनसे कुछ कमतर या कमजोर हैं। मुझे इस रवैये पर घोर आपत्ति है। जब मैं यूपीएससी की तैयारी कर रहा था, तो अक्सर मुझे भी ऐसी बिन मांगी सलाहें और हतोत्साहित करने वाली बातें सुनने को मिलती थीं, जो किसी को भी हताश करने के लिए काफी हैं। आप भरोसा करें, तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि बमुश्किल एकाध मौकों को छोड़कर, मैं शायद ही कभी इन निराशाजनक बातों से प्रभावित हुआ। मुझे शायद ही कभी यह महसूस हुआ हो कि मेरी सफलता को मेरा भाषा माध्यम प्रभावित कर सकता है।
मेरा दृढ़ विश्वास था कि मेरी काबिलियत ही मुझे सफलता तक पहुंचा सकती है, किसी भाषा विशेष का माध्यम नहीं। लिहाजा माध्यम वहीं चुनें, जिसमें आप सहज हों और जिसमें आप खुद को बेहतर ढंग से अभिव्यक्त कर सकें। मेरे अपने भाषा माध्यम को लेकर आत्मविश्वास के कुछ आधार भी थे, जो मुझे लगता है कि आप सबके लिए भी समझना बेहतर होगा। मसलन भाषा पर अधिकार, लेखन कौशल और अध्ययन सामग्री की उपलब्धता। आइए इन बिंदुओं पर कम्रवार बात करते हैं। सर्वप्रथम यह कि आप यूपीएससी की परीक्षा जिस भी भाषा के माध्यम में दें, उस भाषा पर आपका ठीक-ठाक अधिकार होना चाहिए। मैंने यूपीएससी टॉपर्स में जो कुछ कॉमन चीजें देखी हैं, उनमें भाषा का अधिकार और लेखन कौशल प्रमुख है।
प्रसिद्ध अंग्रेजी निबंधकार फ्रांसिस बेकन ने लिखा है-
‘’Reading makes a full man, Conference a ready man and Writing a perfect
man.’’
लेकिन पठन, संवाद और लेखन के इन कौशलों को विकसित करने के लिए भाषा पर ठीक- ठाक अधिकार होना अपरिहार्य है। आप सही लिखें, टू द प्वाइंट लिखें, संक्षिप्त लिखें और सारगर्भित लिखें। भाषा पर अधिकार से मेरा अभिप्राय क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग या कठिन और अबोधगम्य अभिव्यक्तियों से बिल्कुल नहीं है। सवाल सिर्फ इतना सा है कि आप भाषा का अवबोध (comprehension) बखूबी कर पाएं और प्रसंगानुकूल सरल, सहज और प्रासंगिक शब्दों का प्रयोग करते हुए व्यवस्थित ढंग से प्रवाह (flow) के साथ अपनी बात लिख पाएं।
लेखन कौशल पर बात करने से पहले मुझे यह भी याद दिलाना है कि मनोवैज्ञानिकों और भाषाविदों का यह भी मानना है कि बेहतर समझ के लिए मातृभाषा में पढ़ाई करना बेहतर माध्यम है। आपने यदि हिंदी माध्यम से अपने स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई की है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आप घाटे में हैं। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि अगर आपने स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई संतोषजनक तरीके से की है, तो आप कमोबेश फायदे में ही हैं और आपका अपनी भाषा पर ठीक-ठाक अधिकार है। जरूरत है, तो बस अभ्यास की।
लेखन कौशल के उत्कृष्ट स्तर को प्राप्त करने का एक ही सर्वश्रेष्ठ तरीका है-वह है निरन्तर अभ्यास। लेखक कौशल के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं, 'क्या लिखना है' और 'कैसे लिखना है'। 'क्या लिखना है' इसका उत्तर प्रश्न को ठीक तरीके से समझने में छिपा है। प्रश्न को ठीक तरीके से समझ लेने से उत्तर को लिखने की सही दिशा मिल जाती है। प्रश्न के सभी यथासंभव पहलुओं को कवर करते हुए कम्रबद्ध और व्यवस्थित ढंग से उत्तर लिखें, तो निश्चय ही यह उत्तर अच्छे अंक आकर्षित करेगा ही। 'कैसे लिखना है' भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि 'क्या लिखना है'।
'कैसे लिखना है' के लिए कुछ उपयोगी बातें इस प्रकार हैं:
1. व्यवस्थित और क्रमबद्ध ढंग से लिखें। कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा से बचें, तो बेहतर होगा।
2. अपने लेखन में एक प्रवाह विकसित करें। छोटे- छोटे पैराग्राफों में लिखें और कोशिश करें कि दो पैराग्राफों में एक कनेक्शन हो।
3. सरल-सहज और बोधगम्य भाषा का प्रयोग करें। अनावश्यक और अप्रासंगिक शब्दों को थोपने का प्रयास ना करें।
4. जरूर पड़ने पर उदाहरणों, आंकड़ों या कथनों/उक्तियों का प्रयोग बेझिझक करें। ध्यान रखें, ये सभी आपके उत्तर में सहज रूप से समाहित होने चाहिए।
5. लेखन कौशल अभ्यास से ही बेहतर होता है। यह रातों-रात प्राप्त हो सकने वाला कौशल नहीं है। अभ्यास कल से नहीं, आज से ही शुरू करें। 'Tomorrow never comes.'
हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी अपनी इन ताकतों को पहचानें और भाषा पर अधिकार व लेखन कौशल का अभ्यास विकसित करके किसी भी प्रकार से खुद को कमतर आंकने की आदत से छुटकारा पाएं। उपर्युक्त दोनों बातों के अलावा, एक और बात मेरे मन में बहुत स्पष्ट थी। वह थी 'अध्ययन सामग्री की कमी' के सम्बन्ध में। यद्यपि इसमें कोई दो राय नहीं है कि अंग्रेजी माध्यम के मुकाबले हिंदी माध्यम में अध्ययन सामग्री विशेषकर तकनीकी और विज्ञान-प्रौद्योगिकी से जुड़े विषयों पर सामग्री की काफी कमी है। पर इस स्थिति में या तो हमारे सामने सतत् शिकायत करके दुखी रहने का विकल्प है, या फिर कुछेक कमियों को दरकिनार करके 'उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग' कर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने का विकल्प। उम्मीद है कि हम दूसरा विकल्प ही चुनेंगे। हमेशा शिकायत करने प्रवृति से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। यह भी ध्यान रखें कि अध्ययन सामग्री के मामले दूसरी भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थियों के मुकाबले में हिन्दी कहीं बेहतर स्थिति में हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो, राज्यसभा व लोकसभा टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और एनसीईआरटी व प्रकाशन विभाग (भारत सरकार) के तमाम सरकारी प्रकाशन व वेबसाइटें हिंदी में भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा, निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठित प्रकाशक भी हिंदी में किताबें और पत्रिकाएं उपलब्ध करा रहे हैं, जिसके बाद करेंट अफेयर्स के लिए ज्यादा तनाव लेने की जरूरत नहीं है। लिहाजा मेरा विनम्र अनुरोध है कि सही अध्ययन सामग्री को पहचान कर अध्ययन करें और 'क्या लिखना है' की आधारभूत समस्या से छुटकारा पाएं।
हिंदी माध्यम के साथी अगर कहीं पीछे रह जाते हैं, तो वह प्रतिभा और कर्मठता नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की कमी है। मेहनत करने में हमारा कोई सानी नहीं है, पर मनोवैज्ञानिक स्तर पर खुद को कमतर आंकने की आदत संभावित सफलता को दूर ले जाती है। कहते हैं कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत' इस बात को जितना जल्दी समझ लें, उतना बेहतर है। मनोवैज्ञानिक बढ़त और भरपूर आत्मविश्वास आधी लड़ाई जिता सकता है। अगर मन में यह भरोसा है कि अच्छे उत्तर लिखने पर अच्छे अंक मिलेंगे, अच्छा प्रदर्शन करने पर चयन सुनिश्चित है, तो सोचने का नजरिया ही बदल जाएगा और आपके उत्तरों में एक स्पष्टता और मजबूती दिखेगी। साथ ही, परीक्षा के हरेक स्तर प्रारम्भिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और व्यक्तिव परीक्षण में बेहतर प्रदर्शन की संभावनाएं कई गुना बढ़ जाएंगी।
मुझे लगता है कि अगर हम हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी अध्ययन सामग्री की उपलब्धता, विषय चयन, लेखन कौशल, भाषा पर अधिकार जैसे मुद्दों पर उलझनों और उहापोहों से मुक्ति पा सकें, तो सफलता की राह और आसान हो जाएगी। सोच- समझकर भाषा माध्यम चुनें और अगर हिंदी माध्यम चुन ही लिया है, तो उसमें अपना अध्ययन, अभ्यास और अपेक्षित कौशल विकसित कर बिना किसी उहापोह और तनाव के अपनी लकीर बड़ी करते हुए प्रगति पथ पर बढ़ते जाएं।
हरिवंश राय बच्चन ने क्या खूब लिखा है-
‘’मदिरालय जाने को घर से निकलता है पीने वाला,
किस पथ पर जाऊं असमंजस में है वह भोला-भाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूं,
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।‘’
लेखन कौशल पर बात करने से पहले मुझे यह भी याद दिलाना है कि मनोवैज्ञानिकों और भाषाविदों का यह भी मानना है कि बेहतर समझ के लिए मातृभाषा में पढ़ाई करना बेहतर माध्यम है। आपने यदि हिंदी माध्यम से अपने स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई की है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आप घाटे में हैं। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि अगर आपने स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई संतोषजनक तरीके से की है, तो आप कमोबेश फायदे में ही हैं और आपका अपनी भाषा पर ठीक-ठाक अधिकार है। जरूरत है, तो बस अभ्यास की।
लेखन कौशल के उत्कृष्ट स्तर को प्राप्त करने का एक ही सर्वश्रेष्ठ तरीका है-वह है निरन्तर अभ्यास। लेखक कौशल के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं, 'क्या लिखना है' और 'कैसे लिखना है'। 'क्या लिखना है' इसका उत्तर प्रश्न को ठीक तरीके से समझने में छिपा है। प्रश्न को ठीक तरीके से समझ लेने से उत्तर को लिखने की सही दिशा मिल जाती है। प्रश्न के सभी यथासंभव पहलुओं को कवर करते हुए कम्रबद्ध और व्यवस्थित ढंग से उत्तर लिखें, तो निश्चय ही यह उत्तर अच्छे अंक आकर्षित करेगा ही। 'कैसे लिखना है' भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि 'क्या लिखना है'।
'कैसे लिखना है' के लिए कुछ उपयोगी बातें इस प्रकार हैं:
1. व्यवस्थित और क्रमबद्ध ढंग से लिखें। कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा से बचें, तो बेहतर होगा।
2. अपने लेखन में एक प्रवाह विकसित करें। छोटे- छोटे पैराग्राफों में लिखें और कोशिश करें कि दो पैराग्राफों में एक कनेक्शन हो।
3. सरल-सहज और बोधगम्य भाषा का प्रयोग करें। अनावश्यक और अप्रासंगिक शब्दों को थोपने का प्रयास ना करें।
4. जरूर पड़ने पर उदाहरणों, आंकड़ों या कथनों/उक्तियों का प्रयोग बेझिझक करें। ध्यान रखें, ये सभी आपके उत्तर में सहज रूप से समाहित होने चाहिए।
5. लेखन कौशल अभ्यास से ही बेहतर होता है। यह रातों-रात प्राप्त हो सकने वाला कौशल नहीं है। अभ्यास कल से नहीं, आज से ही शुरू करें। 'Tomorrow never comes.'
हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी अपनी इन ताकतों को पहचानें और भाषा पर अधिकार व लेखन कौशल का अभ्यास विकसित करके किसी भी प्रकार से खुद को कमतर आंकने की आदत से छुटकारा पाएं। उपर्युक्त दोनों बातों के अलावा, एक और बात मेरे मन में बहुत स्पष्ट थी। वह थी 'अध्ययन सामग्री की कमी' के सम्बन्ध में। यद्यपि इसमें कोई दो राय नहीं है कि अंग्रेजी माध्यम के मुकाबले हिंदी माध्यम में अध्ययन सामग्री विशेषकर तकनीकी और विज्ञान-प्रौद्योगिकी से जुड़े विषयों पर सामग्री की काफी कमी है। पर इस स्थिति में या तो हमारे सामने सतत् शिकायत करके दुखी रहने का विकल्प है, या फिर कुछेक कमियों को दरकिनार करके 'उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग' कर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने का विकल्प। उम्मीद है कि हम दूसरा विकल्प ही चुनेंगे। हमेशा शिकायत करने प्रवृति से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। यह भी ध्यान रखें कि अध्ययन सामग्री के मामले दूसरी भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थियों के मुकाबले में हिन्दी कहीं बेहतर स्थिति में हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो, राज्यसभा व लोकसभा टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और एनसीईआरटी व प्रकाशन विभाग (भारत सरकार) के तमाम सरकारी प्रकाशन व वेबसाइटें हिंदी में भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा, निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठित प्रकाशक भी हिंदी में किताबें और पत्रिकाएं उपलब्ध करा रहे हैं, जिसके बाद करेंट अफेयर्स के लिए ज्यादा तनाव लेने की जरूरत नहीं है। लिहाजा मेरा विनम्र अनुरोध है कि सही अध्ययन सामग्री को पहचान कर अध्ययन करें और 'क्या लिखना है' की आधारभूत समस्या से छुटकारा पाएं।
हिंदी माध्यम के साथी अगर कहीं पीछे रह जाते हैं, तो वह प्रतिभा और कर्मठता नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की कमी है। मेहनत करने में हमारा कोई सानी नहीं है, पर मनोवैज्ञानिक स्तर पर खुद को कमतर आंकने की आदत संभावित सफलता को दूर ले जाती है। कहते हैं कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत' इस बात को जितना जल्दी समझ लें, उतना बेहतर है। मनोवैज्ञानिक बढ़त और भरपूर आत्मविश्वास आधी लड़ाई जिता सकता है। अगर मन में यह भरोसा है कि अच्छे उत्तर लिखने पर अच्छे अंक मिलेंगे, अच्छा प्रदर्शन करने पर चयन सुनिश्चित है, तो सोचने का नजरिया ही बदल जाएगा और आपके उत्तरों में एक स्पष्टता और मजबूती दिखेगी। साथ ही, परीक्षा के हरेक स्तर प्रारम्भिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और व्यक्तिव परीक्षण में बेहतर प्रदर्शन की संभावनाएं कई गुना बढ़ जाएंगी।
मुझे लगता है कि अगर हम हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी अध्ययन सामग्री की उपलब्धता, विषय चयन, लेखन कौशल, भाषा पर अधिकार जैसे मुद्दों पर उलझनों और उहापोहों से मुक्ति पा सकें, तो सफलता की राह और आसान हो जाएगी। सोच- समझकर भाषा माध्यम चुनें और अगर हिंदी माध्यम चुन ही लिया है, तो उसमें अपना अध्ययन, अभ्यास और अपेक्षित कौशल विकसित कर बिना किसी उहापोह और तनाव के अपनी लकीर बड़ी करते हुए प्रगति पथ पर बढ़ते जाएं।
हरिवंश राय बच्चन ने क्या खूब लिखा है-
‘’मदिरालय जाने को घर से निकलता है पीने वाला,
किस पथ पर जाऊं असमंजस में है वह भोला-भाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूं,
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।‘’
(आलेख
में
व्यक्त
विचार
पूर्णतः
लेखक
के
निजी
विचार
हैं
)
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ReplyDeleteनिंशांत सर मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत धन्यवाद। मैंने आपके फ़ेसबुक पेज व फ़ेसबुक आई. डी. पर कई प्रश्न किये लेकिन किसी कारणवश मुझे उनके उत्तर नहीं मिल पाए।
ReplyDeleteमेरा आपसे यह प्रश्न है कि क्या हिंदी माध्यम में प्रश्नों के उत्तर देने के लिए केवल हिंदी साहित्य के कठिन शब्दों का ही प्रयोग करना अनिवार्य है? क्या हम सामान्य शब्दों का प्रयोग करके उत्तर नहीं दे सकते? मुझे आजतक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला। कृप्या इस परेशानी में आप मेरी सहायता करें।
धन्यवाद।
मंगत सौरोत
पलवल, हरियाणा।
प्रिय दोस्त, कठिन शब्दों का प्रयोग बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है। सरल, सहज और प्रासंगिक भाषा का प्रयोग करें।
ReplyDeleteThank you sir....
ReplyDeleteSir ji plz books list batao plz
ReplyDeleteTHANK YOU SO MUCH NISHANT SIR FOR THAT INSPIRATION,
ReplyDeleteSIR I WOULD REQUEST YOU TO SUGGEST SOME GOOD HINDI BOOKS FOR EXAM , THAT WOULD BE REALLY HELPFUL FOR US.!
ONCE AGAIN THANK YOU SIR!!
मार्गदर्शन करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद निशान्त सर।
ReplyDeleteआपकी सफलता ने निःशंदेह पहले से व्याप्त बहुत सारी भ्रांतिया दुर कि है। लेकिन हिंदी माध्यम से अन्तिम रूप से चयनित अभ्यर्थियों की घटती संख्या मन में थोड़ा हतोत्साहित करती है।।।
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ReplyDeleteनिशांत सर,
ReplyDeleteप्रारम्भिक और मुख्य परीक्षा के सिलेबस के बीच सामंजस्य किस तरह से बिठाए?
किस तरह से मुख्य परीक्षा के साथ-साथ प्रारम्भिक परीक्षा की तैयारी की जाए?
मार्गदर्शन करिए सर!
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ReplyDelete8:00
ReplyDeleteसारगर्भिक लेख के लिए धन्यावाद सर!
सर, कृपया किताबों और वेबसाइट्स की एक विस्तृत सूची से संबंधित एक लेख भी अवश्य लिखें। साथ ही उन सभी स्रोतों का विवरण भी दें जिनसे सामान्य अध्ययन के सभी चारों पेपर में "सामग्री" या सिलेबस की जरूरत पूरी हो सके। आभार।
sir syllabus ko bind up kaise kare....please help me
ReplyDeleteSir ji, i have so much difficulties in making synopsis . what should i do ? If u ever get the time , please discuss this also .
ReplyDeletebhot bhoyt dhanyawad sir ji :)
ReplyDeletesir good morning.... CSE ki prepration k liye kaun kaun si book padhi jaye...
ReplyDeleteधन्यवाद निंशांत जैन जी।
ReplyDeleteआपसे आशा है कि आप अपने ब्लोग व फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर मेरा निरंतर मार्गदर्शन करते रहेंगे।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
thank you sir
ReplyDelete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 07 मई 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
निशांत भाई ... एक सम्पूर्ण निबन्ध ( हम सब के लिए एक नजीर के रूप में) अगर साझा कर पायें तो हम सभी परीक्षार्थियों के लिए बहुत लाभप्रद होगा..
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ReplyDeleteहिंदी माध्यम में छात्रों का कम होता रिजल्ट एक चिंता का विषय है। और सच कहूँ निशांत सर तो हमारे आत्मविश्वाश के कम होने का ये सबसे बड़ा कारन है।
ReplyDeleteपहले मुझे भाषा एक समस्या नहीं लगती थी। बस मन में एक ही बात रहती थी के जितना मेहनत करुँगी उस हिसाब से मुझे परिणाम मिलेगा। परंतु सिविल सर्विसेज के 2015 के नतीजे में हिंदी माध्यम का तुलनात्मक रूप से कम रिजल्ट देखकर एक डर सा बैठ गया है मन में।
निशांत जी, मुझे हिंदी साहित्य की किताबो की सूची प्रदान करे तो आपकी बहुत कृपा होगी
ReplyDeleteजैसे की.... १. हिंदी साहित्य का इतिहास
२. ड्रामा, कथा साहित्य, हिंदी साहित्य की आलोचना
Thanks a lot sir
ReplyDeleteThanks a lot sir
ReplyDeleteमार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteWith the rising competition and the immensely difficult syllabus achieving success in the UPSC exam is getting difficult with each passing year, the exam is known to be one of the most desired and the most arduous exams to appear for and is overall one of the toughest competitive exams to ever appear for. Best IAS Coaching In Bangalore. However, with the help of the Best IAS Coaching in Bangalore, you can rest easy and begin your preparation on the right foot forward, the Best IAS Coaching in Bangalore will help you get started with your exam preparation and will help you being your UPSC exam journey and will assist you throughout your journey, the Best IAS Coaching in Bangalore has helped thousands of students achieve great success in their competitive exam and has set its aim to help every UPSC aspirant in the country to achieve great success in their examination and help them with their preparation. Best IAS Coaching In Bangalore. The Best UPSC Coaching in Bangalore will provide you with exclusive features and facilities and will help you with your overall academics, the faculty team of the institute is highly dedicated to students’ success and helps them push through their limitations by helping them realize their true potential.
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