Friday 26 April 2019

ऊँट बड़े तुम ऊटपटाँग!...

अजब-गजब आकार तुम्हारा
बालू ही संसार तुम्हारा,
कमर पे कूबड़ रखा हुआ है
दिया हो जैसे किसी ने टाँग।

भोली सूरत गैया जैसी
लंबी गरदन है जिराफ-सी,
कूँ-कूँ करते हो तुम बिल्कुल
जैसे  मुर्गा  देता  बाँग।

लंबे-लंबे  सफर  नापते
पानी बिन न खड़े टापते,
रेत पे सरपट दौड़े जाते
भर के नन्ही सी छलाँग।

रेगिस्तानी तुम जहाज हो
मरुभूमि के महाराज हो,
कौन है सानी भला तुम्हारा
भारी बहुत तुम्हारी माँग।

© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(दैनिक ट्रिब्यून, 8 अप्रैल 2007 में प्रकाशित)

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