मुर्गा बोला यूँ मुर्गी से
हूँ मैं सबसे हटकर,
जंगल सारा जाग उठे जब
देता बाँग मैं डटकर।
कलगी मेरी जग से सुंदर
चाल मेरी मस्तानी,
उड़ न सकूँ भले जीवन भर
हार कभी न मानी।
मुर्गी बोली फिर मुर्गे से
बस छोड़ो इतराना,
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बन
अपनी - अपनी गाना।
करके देखो एक दिन ऐसा
मत देना तुम बाँग,
मानूँ तुम्हें मैं तीसमार खाँ
रुका रहे जो चाँद।
© निशान्त जैन
बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(दैनिक जनवाणी, 8 अप्रैल 2012 में प्रकाशित)
हूँ मैं सबसे हटकर,
जंगल सारा जाग उठे जब
देता बाँग मैं डटकर।
कलगी मेरी जग से सुंदर
चाल मेरी मस्तानी,
उड़ न सकूँ भले जीवन भर
हार कभी न मानी।
मुर्गी बोली फिर मुर्गे से
बस छोड़ो इतराना,
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बन
अपनी - अपनी गाना।
करके देखो एक दिन ऐसा
मत देना तुम बाँग,
मानूँ तुम्हें मैं तीसमार खाँ
रुका रहे जो चाँद।
© निशान्त जैन
बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(दैनिक जनवाणी, 8 अप्रैल 2012 में प्रकाशित)
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