अजब-अनोखी प्यारी दुनिया,
लगती सबसे न्यारी दुनिया,
इस दुनिया के खेल नवेले,
जीव-जंतु प्यारे अलबेले।
अजब-गजब हैं रंग धरा के,
कैसे खेल खिलाती है,
टीचर कहती गोल है दुनिया,
मुझको चपटी लगती है।
इस दुनिया में कैसे-कैसे,
पशु-पक्षी हैं भरे पड़े,
कोई छोटा कोई मोटा,
जाने कैसे रंग भरे।
लंबी गर्दन है जिराफ की,
ऐसी जैसे हो खंभा,
जंबो हाथी इतना भारी,
लेना मुश्किल है पंगा।
© निशान्त जैन
बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नवभारत टाइम्स ,14 दिसंबर , 2008 में प्रकाशित)
लगती सबसे न्यारी दुनिया,
इस दुनिया के खेल नवेले,
जीव-जंतु प्यारे अलबेले।
अजब-गजब हैं रंग धरा के,
कैसे खेल खिलाती है,
टीचर कहती गोल है दुनिया,
मुझको चपटी लगती है।
इस दुनिया में कैसे-कैसे,
पशु-पक्षी हैं भरे पड़े,
कोई छोटा कोई मोटा,
जाने कैसे रंग भरे।
लंबी गर्दन है जिराफ की,
ऐसी जैसे हो खंभा,
जंबो हाथी इतना भारी,
लेना मुश्किल है पंगा।
© निशान्त जैन
बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नवभारत टाइम्स ,14 दिसंबर , 2008 में प्रकाशित)
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