Friday 26 April 2019

ई-मेल...

धूम मचाती रंग जमाती,
मन को भाती है ई-मेल।

चुटकी भर में दौड़ी जाए
एक पल में जवाब पहुँचाए,
कुरियर या स्पीड पोस्ट हो
इसके आगे हैं सब फेल।

चिट्ठी लंबी-चौड़ी कितनी
फाइलें साथ लगी हों जितनी,
बड़े-बड़े  संदेशे  ढोए
जैसे हो बच्चों का खेल।

बस साइबर कैफे पर जाना
या ब्रॉडबैंड कनेक्शन लाना,
डाक-कुरियर के खर्चों को
अब क्यों मोनू-पिंकी झेल।

जगह-जगह के बच्चे आएँ
भाँति-भाँति के मित्र बनाएँ,
अपनी खुशियाँ सबसे बाँटें
हो जाए दुनिया का मेल।


© निशान्त जैन

बाल कविता संकलन 'शादी बन्दर मामा की' में संकलित।
(नंदन, अप्रैल 2013 में प्रकाशित)

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