जिनके परम कैवल्य में चेतन अचेतन द्रव्य सब,
उत्पाद व्यय अरु ध्रौव्य युत नित झलकते हैं मुकुर सम,
जो जगत दृष्टा दिवाकर सम मुक्ति मार्ग प्रकट करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
जिनके कमल सम हैं नयन दो, लालिमा से रहित हैं,
करते प्रकट अन्तर बहिर, क्रोधादि से नहीं सहित हैं,
हैं मूर्ति जिनकी शान्तिमय, अति विमल जो मुद्रा धरें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
नमित इन्द्रों के मुकुट मणियों के प्रभा समूह से,
शोभायमान चरणयुगल लगते हैं जिनके कमल से,
संसार ज्वाला शान्त करने हेतु जल सम जो बहें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
मुदित मन से चला जिनकी अर्चना के भाव से,
तत्क्षण हुआ सम्पन्न मेंढक स्वर्ग सुख भण्डार से,
आश्चर्य क्यों? यदि भक्तजन नित मोक्षलक्ष्मी वरण करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
तप्त कंचन प्रभा सम, तन रहित ज्ञान शरीर युत,
हैं विविधरूपी एक भी हैं, अजन्मे सिद्धार्थ सुत,
हैं बाह्य अंतर लक्ष्मी युत तदपि विरागी जो बने,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
जिनकी वचनगंगा विविध नय युत लहर से निर्मला,
ज्ञानजल से नित्य नहलाती जनों को सर्वदा,
जो हंस सम विद्वत जनों से निरन्तर परिचय करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
जिसने हराया कामयोद्धा तीनलोकजयी महा,
अल्पायु में भी आत्मबल से वेग को निर्बल किया,
जो निराकुलता शान्तिमय आनन्द राज्य प्रकट करें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
जो वैद्य हैं नित मोहरोगी जनों के उपचार को,
मंगलमयी नि:स्वार्थ बन्धु विदित महिमा लोक को,
उत्तमगुणी जो शरण आगत साधुओं के भय हरें,
वे महावीर प्रभु हमारे नयनपथगामी बनें।
भागेन्दुकृत जो महावीराष्टक स्तोत्र पढ़ें सुनें,
भक्तिमय वे भक्तिपूर्वक परम गति निश्चय लहें।
-- निशान्त जैन