Wednesday, 16 August 2017

बॉब डिलेन (Bob Dylen), गीतों की दुनिया और साहित्य का नोबेल

मुझे लगता है कि जाने-माने अमेरिकी गीतकार और गायक Bob Dylan को लिटरेचर का नोबेल मिलना साहित्य जगत में एक नए बदलाव की आहट है। उम्मीद है, इससे हिन्दी और भारतीय भाषाओं का अकादमिक साहित्य जगत थोड़ा उदार होगा और लोकप्रिय साहित्य-संगीत को 'साहित्य' के रूप में स्वीकारना शुरू करेगा।

अकादमिक जगत के कुछ (सब नहीं, अतः कृपया दिल पर लें) मठाधीश टाइप के लोग लोकप्रिय गीतकारों और लोक कवियों को 'साहित्यकार' की श्रेणी में नहीं गिनते। हिन्दी साहित्य जगत में तो स्थिति और भी ख़राब है।ऐसी कविताजो एक सुशिक्षित व्यक्ति के भी पल्ले पड़े, सिर्फ़ उसे ही साहित्य मानने की जिद और आम बोल-चाल की भाषा में रचे गए लयबद्ध गीतों और कविताओं को दोयम दर्जे का साहित्य मानना कहाँ तक तर्कसंगत है, उम्मीद है, कुछ विद्वान ही इस पर प्रकाश डालेंगे। 
भूलना नहीं चाहिए कि साहित्य की तीन मूल विधाएँ -गीत, कहानी और नाटक, सभ्यता की शुरुआत से ही लोक-जीवन में रचे बसे हैं और अपनी लोक भाषा, लय और नाद सौंदर्य के बल पर आम जन की ज़ुबान पर चढ़ते रहे हैं। कबीर से लेकर निराला तक, कविता की तुकांतता ने निरंतर उसके नाद सौंदर्य के माध्यम से साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया है।

हमें उम्मीद करनी चाहिए कि हिन्दी वाले अकादमिक लोग भी अब पुनर्विचार करते हुए गुलज़ार साहब, गोपालदास नीरज, दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी, प्रसून जोशी, इरशाद कामिल, स्वानन्द किरकिरे जैसे बेहतरीन गीतकारों के लोकप्रिय गीतों के लिटरेरी योगदान को कुछ तवज्जो देंगे।

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