Sunday, 27 August 2017

Toilet: एक प्रेम कथा : मामला शौच का नहीं, सोच का है ....

Toilet: एक प्रेम कथा : मामला शौच का नहीं, सोच का है
-----------------------------------------
भारत सरकार के महत्वाकांक्षी 'स्वच्छ भारत अभियान' के खुले में शौच मुक्त भारत के संदेश को ख़ुद में बेहतरीन तरीक़े से समेटने वाली यह मूवी एक बेहद दिलचस्प और शानदार मूवी है। अगर तक नहीं देखी है, तो देख आइए फटाफट। जानते हैं, क्यों?
एक देहाती अधेड़ युवक की भूमिका में केशव (अक्षय कुमार) और उनके छोटे पर नटखट भाई की भूमिका में दिव्येन्दु शर्मा ('प्यार का पंचनामा' में लिक्विड) की चुहल और छेड़छाड़ ने लगातार गुदगुदाने वाला हास्य पैदा किया है।
मथुरा में ब्रज की गलियों का देहाती माहौल और उसमें एक साइकिल स्टोर चलाने वाले नायक और टॉपर नायिका (भूमि पेडनेकर) के बीच पनपने वाला गँवई सहज प्रेम, साधारण निम्न मध्यमवर्गीय देसी जीवन और बोलचाल में ब्रज की मिठास, मूवी को बहुत दिलचस्प और मज़ेदार बनाते हैं। लट्ठमार होली और देसी बारात के दृश्य आम आदमी को ख़ुद को फ़िल्म से जोड़ पाने में मदद करते हैं।
फ़िल्म ने खुले में शौच की आदत से मजबूर समाज के हर दुराग्रह और कुतर्क पर जमकर चोट की है। सुबह-सुबह गाँव के बाहरी छोर के लिए घूँघट ओढ़े निकलने वाली महिलाओं की 'लोटा पार्टी' पर बेहद सपाट तंज कसने में फ़िल्म हिचक नहीं दिखाती-
'बहू से घूँघट कराओ और शौच के लिए खुले में भेजो'
'संडास करना इतनी बुरी चीज़ है तो पेट क्यों दिया भगवान ने?'
'बीबी साड़ी उठा के खुल्ले में बैठे, इसमें बड़ी शान है तुम्हारी?'
'जानवर को ही हक़ है इस घर के आँगन में हगने का'
'हम औरतें हैं, तो समझौता हमी को करना है।'
'देश के मर्दों को चौड़े में करने में मर्दानगी लागे?'
'सबसे बड़ा दोषी कौन? वे औरतें,जो कल सुबह फिर लोटा लेकर खुले में जाने वाली हैं'
इस तरह के संवाद बिना उपदेश दिए सहज ही सोच बदलने को मजबूर कर देते हैं।

घर और यहाँ तक कि गाँव की परिधि के भीतर भी शौचालय न बनने देने के पीछे दिए जाने वाले दकियानूसी और अजीब तर्कों की मूवी में अच्छे से खिंचाई की गयी है।
'शमशान क्यों ले जाते हो, मुर्दे को यहीं जला दो'
'अंग्रेज़ चले गए, क्या हम घर में टॉयलेट बनवाकर अंग्रेज़ी सभ्यता के ग़ुलाम बन जाएँ'
'टॉयलेट बनवाकर बीमारी घर ले आएँ क्या?'
'क्या राम-सीता ने जंगल में शौचालय बनवाए?'
खुले में शौच के पक्ष में दी जाने वाली संस्कृति और शास्त्रों की तथाकथित दुहाई की हल्के-फुल्के हँसी-मजाक द्वारा जमकर ख़बर ली गयी है। टॉयलेट के पक्ष में जंग छेड़ने वाले केशव (अक्षय कुमार) को यह समझने में देर नहीं लगती कि उसकी लड़ाई इसी 'सभ्यता' और 'संस्कृति' से है।
फ़िल्म के गाने, 'हंस मत पगली, प्यार हो जाएगा' और 'कर ले टॉयलेट का जुगाड़' आम आदमी के दिल से सीधे जुड़ जाते हैं। अनुपम खेर और सुधीर पाण्डेय ने दो एकदम विपरीत सोच के बुज़ुर्गों की भूमिका में बेहतरीन अभिनय से दिल जीता है।
मज़ाक़-मज़ाक़ में यह फ़िल्म दर्शकों की रुढ़िवादी सोच पर चोट करने में कामयाब हुई है। फ़िल्म का संदेश एकदम साफ है-
'परदा सोच से हटाके, शौच पे लगाने का वक़्त आ गया है।'
If you change nothing, nothing will change.

7 comments:

  1. अप्रतिम व्याख्या सर...

    ReplyDelete
  2. Sharma Academy is a leading name for UPSC COACHING IN INDOREe, offering expert faculty, comprehensive study material, and a student-focused approach. With a proven track record in UPSC Coaching in Indore, Sharma Academy ensures quality education. Their personalized mentorship and structured courses make them a top choice for UPSC Coaching in Indore aspirants. If you are seeking effective UPSC Coaching in Indore, Sharma Academy’s affordable fees and flexible batches stand out. Choose Sharma Academy – the benchmark for UPSC Coaching in Indore, trusted by thousands for UPSC Coaching in Indore, guiding future leaders with exceptional UPSC COACHING IN INDORE programs.

    ReplyDelete