हिचकी: ‘क्यों’ और ‘क्यों नहीं’ में हिचकी भर का फ़र्क़ है...
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लम्बे वक़्त बाद कोई फ़िल्म देखी। भावुक कर गयी यह फ़िल्म। बातों ही बातों में कब नैना (रानी मुखर्जी) ज़िंदगी का फ़लसफ़ा सिखा देतीं हैं, पता ही नहीं चलता।
किसी के शारीरिक या मानसिक विकार के कारण उस शख़्स को हिक़ारत की नज़र से देखने वालों के लिए नैना और उसके खान सर किसी मिसाल से कम नहीं।
किसी के शारीरिक या मानसिक विकार के कारण उस शख़्स को हिक़ारत की नज़र से देखने वालों के लिए नैना और उसके खान सर किसी मिसाल से कम नहीं।
* नैना कहती है- ‘अपने सच को अपनी कमज़ोरी नहीं, ताक़त बनाओ’।यही तो ‘विकलांग’ (disabled) से ‘विशेष योग्यजन’ (differently abled) तक की यात्रा है। दरअसल ख़ुद को अपनी सारी कमज़ोरियों के साथ स्वीकार करना जीवन में ख़ुशी हासिल करने के लिए बेहद ज़रूरी है।
* हर किसी differently abled व्यक्ति की हम सिर्फ़ एक ही तरीक़े से मदद कर सकते हैं कि उन्हें बाक़ी सामान्य लोगों की तरह treat किया जाए। उन्हें आपसे sympathy नहीं, empathy चाहिए।
* ’शिक्षा के अधिकार’ की मदद से elite कोन्वेंट स्कूल में प्रवेश पाने वाले ग़रीब बच्चों को स्वीकार न कर पाने की मानसिकता बेहद शर्मनाक है। वाडिया सर का बार-बार कहना ‘they don’t belong to us’ सोचने पर मज़बूर करता है। नैना ऐसे insecure लोगों को आईना दिखाने का काम बख़ूबी करती है। आख़िर ये कौन सी शिक्षा पद्धति है, जो मासूम बच्चों के कोमल मन में आर्थिक-सामाजिक आधार पर भेदभाव और घृणा की नींव रख रही है। सेक्शन 9 F से इतना भी क्या डरना?
* मुँह में सोने की चम्मच लेकर पैदा होने वाले और ‘बेस्ट’ स्कूलों में पढ़ने वाले luckier हो सकते है , पर ज़रूरी नहीं कि happier भी हों।
* फ़िल्म टीचिंग के noble profession में दुर्घटनावश आए reluctant teachers को भी आइना दिखाती है। नैना के ये तीन वाक्य किसी भी शिक्षक की ज़िंदगी का turning point बन सकता है-
1. There are no bad students, only bad teachers.
2. ग़लत सीखने के लिए हर स्टूडेंट के marks कट जाते हैं, पर ग़लत सिखाने पर teachers के मार्क्स नहीं कटते
3. ज़िंदगी स्कूल के बाहर जब इम्तिहान लेती है, तो subject-wise नहीं लेती।
1. There are no bad students, only bad teachers.
2. ग़लत सीखने के लिए हर स्टूडेंट के marks कट जाते हैं, पर ग़लत सिखाने पर teachers के मार्क्स नहीं कटते
3. ज़िंदगी स्कूल के बाहर जब इम्तिहान लेती है, तो subject-wise नहीं लेती।
* शिक्षक जैसे श्रेष्ठतम पेशे की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करती है नैना। हमें आज भी अपने फ़ेवरेट टीचर याद हैं, उनकी तनख्वाह नहीं। सचमुच वही टीचर बेस्ट हैं, जो टीचर होने के साथ-साथ नैना जैसे Friend, Philosopher and Guide हों। ऐसे टीचर को ताउम्र भुलाना नामुमकिन है।
-निशान्त जैन
-निशान्त जैन
शानदार निशांत भइया।
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