Newton - यथार्थ का बेजोड़ आख्यान
-----------------------------------------
नू का 'न्यू', तन का 'टन' करने वाले नूतन कुमार उर्फ़ न्यूटन के दिलचस्प और बेलौस चरित्र पर केंद्रित यह फ़िल्म भारतीय सिनेमा की कुछ यादगार और प्रभावी फ़िल्मों में से एक रहेगी।
आदर्शवाद के यूटोपिया में जीने वाला सीधा-सादा युवक न्यूटन अपने रिश्ते के लिए कम उम्र की लड़की लेकर आए परिजनों को सिरे से इंकार करने से लेकर, ऑफ़िस में प्राइवेट बात के लिए 'लंच ब्रेक' का इंतज़ार करने तक, घनघोर ईमानदारी का पुलिंदा है।
इसीलिए न्यूटन को हर कोई नसीहत दे ही जाता है जीवन में थोड़ा 'प्रैक्टिकल' होने की-
'तुम्हारी दिक़्क़त क्या है?'
'ईमानदारी का घमंड'
भारतीय लोकतंत्र के महापर्व 'चुनाव' के इर्द-गिर्द रचे गए इस आख्यान में अपनी तथाकथित अव्यावहारिकता ( impracticality) के बावजूद न्यूटन हमारी सोच और व्यवस्था पर कुछ बड़े और प्रासंगिक सवाल उठाता है:-
-आख़िर क्या कारण है कि हमारे पीठासीन अधिकारी अक्सर दुर्गम और सुदूर जनजातीय क्षेत्रों में चुनाव ड्यूटी से बचने के लिए हर सम्भव पैंतरा (बीमारी के बहानों समेत) आज़माते हैं।
- क्यों यह समझना ज़रूरी है कि एक परिपक्व लोकतंत्र में एक-एक वोट का कितना महत्व है, भले ही मतदाता अशिक्षित और ग़ैर-जागरूक ही क्यों न हो।
-"इलेक्शन बूथ' में ताश खेलने की पुरानी परम्परा है", यह संवाद हमारी 'ग़लत प्रवृत्ति को justify करने की आदत का बेहतरीन नमूना' नहीं है?
-असिस्टेंट कमाडेंट साहब ('आत्मा सिंह'- पंकज त्रिपाठी) का यह कहना कि -'लोकल लोगों पर विश्वास नहीं है', हमारे ही समाज के भीतर परस्पर अविश्वास के संकट की ओर संकेत करता है। स्थानीय जनजातीय समुदाय की बूथ लेवल अधिकारी (BLO) को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने का प्रयास किस सोच की ओर इशारा करता है?
-"वर्दी में जिसे चाहे धमका रहे हैं।"
"वर्दी में विनती भी धमकी लगती है।"
जैसे संवाद हमारे सुरक्षा बलों के प्रति समाज में सम्वेदनशीलता की ज़रूरत की ओर ध्यान खींचते हैं।
- निर्वाचन प्रक्रिया कितनी महत्वपूर्ण है और polling manual एक पीठासीन अधिकारी (presiding officer) को कितनी असीम शक्तियाँ देता है, यह इस मूवी में समझा जा सकता है।
- 'पिकनिक नहीं ये duty है मेरी', हममें से कितने हैं, जो इस स्तर का कर्तव्यबोध रखते हैं?
- भारतीय भाषाओं और बोलियों के प्रश्न की ओर भी यह मूवी ध्यान आकर्षित करती है। जहाँ एक ओर हमारा संविधान और दुनिया भर के मनोविज्ञानी मातृभाषा में प्रारम्भिक शिक्षा की वकालत करते हैं, वहीं गाँव-क़स्बों-शहरों में चारों ओर हर वर्ग के लोग कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली उगे हुए 'पब्लिक स्कूलों' में तथाकथित इंग्लिश मीडियम स्कूलों (ज़्यादातर गुणवत्ता से कोसों दूर) में पढ़ाई कराकर अघा रहे हैं।
फ़िल्म का एक संवाद 'आजकल कुत्ते भी इंग्लिश समझते हैं', हालात की गम्भीरता बयाँ करने को काफ़ी है।
वैसे गोण्डी भाषा के माध्यम से जनजातियों की भाषा का गम्भीर प्रश्न भी उठाया गया है।
- तमाम सवालों के बीच ये कहानी नियमों के अनुरूप आचरण करते वक़्त 'application of mind' की ज़रूरत पर भी ध्यान खिंचती है। दिमाग़ का समुचित इस्तेमाल किए बग़ैर कोई भी 'रूल बुक' या मैनुअल सिर्फ़ एक काग़ज़ का पुलिंदा भर है।
-'ईमानदारी के अवार्ड में सबसे ज़्यादा बेईमानी होती है।',जैसे संवाद हमारी व्यवस्था पर दिलचस्प ढंग से व्यंग्य करते हैं।
राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी ने अपने देसीपन से भरे अभिनय से बेहद प्रभावित किया है। हिंदी सिनेमा के अच्छे दिन आ रहे हैं।
-----------------------------------------
नू का 'न्यू', तन का 'टन' करने वाले नूतन कुमार उर्फ़ न्यूटन के दिलचस्प और बेलौस चरित्र पर केंद्रित यह फ़िल्म भारतीय सिनेमा की कुछ यादगार और प्रभावी फ़िल्मों में से एक रहेगी।
आदर्शवाद के यूटोपिया में जीने वाला सीधा-सादा युवक न्यूटन अपने रिश्ते के लिए कम उम्र की लड़की लेकर आए परिजनों को सिरे से इंकार करने से लेकर, ऑफ़िस में प्राइवेट बात के लिए 'लंच ब्रेक' का इंतज़ार करने तक, घनघोर ईमानदारी का पुलिंदा है।
इसीलिए न्यूटन को हर कोई नसीहत दे ही जाता है जीवन में थोड़ा 'प्रैक्टिकल' होने की-
'तुम्हारी दिक़्क़त क्या है?'
'ईमानदारी का घमंड'
भारतीय लोकतंत्र के महापर्व 'चुनाव' के इर्द-गिर्द रचे गए इस आख्यान में अपनी तथाकथित अव्यावहारिकता ( impracticality) के बावजूद न्यूटन हमारी सोच और व्यवस्था पर कुछ बड़े और प्रासंगिक सवाल उठाता है:-
-आख़िर क्या कारण है कि हमारे पीठासीन अधिकारी अक्सर दुर्गम और सुदूर जनजातीय क्षेत्रों में चुनाव ड्यूटी से बचने के लिए हर सम्भव पैंतरा (बीमारी के बहानों समेत) आज़माते हैं।
- क्यों यह समझना ज़रूरी है कि एक परिपक्व लोकतंत्र में एक-एक वोट का कितना महत्व है, भले ही मतदाता अशिक्षित और ग़ैर-जागरूक ही क्यों न हो।
-"इलेक्शन बूथ' में ताश खेलने की पुरानी परम्परा है", यह संवाद हमारी 'ग़लत प्रवृत्ति को justify करने की आदत का बेहतरीन नमूना' नहीं है?
-असिस्टेंट कमाडेंट साहब ('आत्मा सिंह'- पंकज त्रिपाठी) का यह कहना कि -'लोकल लोगों पर विश्वास नहीं है', हमारे ही समाज के भीतर परस्पर अविश्वास के संकट की ओर संकेत करता है। स्थानीय जनजातीय समुदाय की बूथ लेवल अधिकारी (BLO) को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने का प्रयास किस सोच की ओर इशारा करता है?
-"वर्दी में जिसे चाहे धमका रहे हैं।"
"वर्दी में विनती भी धमकी लगती है।"
जैसे संवाद हमारे सुरक्षा बलों के प्रति समाज में सम्वेदनशीलता की ज़रूरत की ओर ध्यान खींचते हैं।
- निर्वाचन प्रक्रिया कितनी महत्वपूर्ण है और polling manual एक पीठासीन अधिकारी (presiding officer) को कितनी असीम शक्तियाँ देता है, यह इस मूवी में समझा जा सकता है।
- 'पिकनिक नहीं ये duty है मेरी', हममें से कितने हैं, जो इस स्तर का कर्तव्यबोध रखते हैं?
- भारतीय भाषाओं और बोलियों के प्रश्न की ओर भी यह मूवी ध्यान आकर्षित करती है। जहाँ एक ओर हमारा संविधान और दुनिया भर के मनोविज्ञानी मातृभाषा में प्रारम्भिक शिक्षा की वकालत करते हैं, वहीं गाँव-क़स्बों-शहरों में चारों ओर हर वर्ग के लोग कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली उगे हुए 'पब्लिक स्कूलों' में तथाकथित इंग्लिश मीडियम स्कूलों (ज़्यादातर गुणवत्ता से कोसों दूर) में पढ़ाई कराकर अघा रहे हैं।
फ़िल्म का एक संवाद 'आजकल कुत्ते भी इंग्लिश समझते हैं', हालात की गम्भीरता बयाँ करने को काफ़ी है।
वैसे गोण्डी भाषा के माध्यम से जनजातियों की भाषा का गम्भीर प्रश्न भी उठाया गया है।
- तमाम सवालों के बीच ये कहानी नियमों के अनुरूप आचरण करते वक़्त 'application of mind' की ज़रूरत पर भी ध्यान खिंचती है। दिमाग़ का समुचित इस्तेमाल किए बग़ैर कोई भी 'रूल बुक' या मैनुअल सिर्फ़ एक काग़ज़ का पुलिंदा भर है।
-'ईमानदारी के अवार्ड में सबसे ज़्यादा बेईमानी होती है।',जैसे संवाद हमारी व्यवस्था पर दिलचस्प ढंग से व्यंग्य करते हैं।
राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी ने अपने देसीपन से भरे अभिनय से बेहद प्रभावित किया है। हिंदी सिनेमा के अच्छे दिन आ रहे हैं।
एक बेहतरीन समीक्षा के लिए कोटि कोटि धन्यवाद सर।
ReplyDeleteBahut sahi baat...sir ji
ReplyDeleteNice...
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteउल्लेखनीय समीक्षा ,अद्भुत दर्शन।
ReplyDeleteBas apka margadaRshan milta rahe aise hi sir..
ReplyDeleteHi Nice Blog,
ReplyDeleteCompetition Guru provide best coaching for HAS Coaching in Chandigarh. HPPSC (Himachal Pradesh Public Service Commission) is the supreme constitutional body of the state of Himachal Pradesh.